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पृष्ठ:सूरसागर.djvu/५४२

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दशमस्कन्धं-१०


ए लि फूले मरुवो मोगरो सेवती फूल बेलि संतन हितही फूलडोल॥५॥ तहाँ हीन अंबामौरेहै फूले जहां निबुवा सदाफल फूले सरस रस फूलडोल। तहाँ कमल केवरो फूले जहाँ केतकी कनेरें फूले संतन हितही फूलडोल॥६॥ फूली माधवी मालतीरेलि फूलेही मधुप करत हैं केलि सरसरसही फूलडोल। फूले फलेहैं आनँद बेलि फूले पिवत सुमन रस पेलि संतन हितही फूलडोल॥७॥ फूलनके सोंधेवार मानो मधुप छबि अपार सरस रसही फूलडोल। फूलनहोके हिएहैं हार सुरसरी मानो धरेही धार संतन हितही फूलडोल॥८॥ माथे मुकुटहै रचित फूल फलन कीहै बेनी शीशफूल सरस रसही फूलडोल। फूलनहीकेहैं बेंदी भाल फूलनके सब नख शिख श्रृंगार संतन हितही फूलडोल॥९॥ फूलेहैं हो धेनु धाम सब ग्याल बाल फूलहैं हो नंदजूके लाल सरस रसही फूलडोल। फूली गोपी हीन तरुन वृद्धबाल फूली करतिहैं नाना विधि ख्याल संतन हितही फूलडोल॥१०॥ फूली रोहिणी यशोमति रानी फूलीहै देवि हरिही रजधानी सरस रसही फूलडोल। फूलेहैं नंद संकर्षन सुखमानी फूल गोकुलही प्राणी संतन हितही फूलडोल॥॥११॥ फूलेही बजावैं डफ ताल मृदंग बजै महुवरि महुचंग सरस रसही फूलडोल॥ फूले बजावैं बाँसुरी सुरसंग बजावै अमृत कुंडली उपंग संतन हितही फूलडोल॥१२॥ फूले बजावैं किन्नरी यंत्र तार गति सुर मंडल झनकार सरस रससही फूलडोल। फूले बजावत गिरि गिरी गार मदन भेरि घहराइ अपार संतन हितही फूलडोल॥१३॥ फूलेहि न बजावें रुंज मुरुंज फूलेबजावैं झांझि झालरी पुंज सरसरसही फूलडोल। फूले सुर बजावै दुंदुभी घोर गुंज कूंजत मोर मराल कोकिल कुंज संतन हितही फूलडोल॥१४॥ देखि डोल ब्रजजन सब फूले गोपी झुलावति गिरिधर झूले सरस रसही फूलडोल। फूलेहो मुदित मनोहर फूले रसिकान रासेक शिरोमणि फूले संतन हितही फूलडोल॥१५॥ फूली हरषि परस्पर गावैं होहोरी बोलति मीठे बोल बोलावैं सरस रस फूलडोल। फूलीं प्रमुदित मनोहर भावें कमलनयनको लाड लडावें संतनहितही फूलडोल॥१६॥ फूली चोवा चंदन वंदन रोरो केसरि मृगमद मथि मथि घोरी सरस रसही फूलडोल। फूली छिरकति नवलकिसोरी अबीर गुलाल भरें सब झोरी संतन हितही फूलडोल॥१७॥ फूली नाचति वृद्ध बाल यौबन भोरी फूले ग्वाल ग्वालिनि यूथ यूथनि जोरी सरस रसही फूलडोल। फूले करत कुलाहल तिहुँपुर खोरी फूलेहैं नरनारि किसोरी संतन हितही फूलडोल॥१८॥ फूले फगुवा मँगाय दियो रसराख्यो पट भूषण पहिराय रह्यो नहीं काष्यो सरस दिशही फूलडोल। फूले हरि हँसि हँसि अमृत भाष्यो फूलेहो जो जैसे तैसे सबको मनराख्यो संतन हितही फूलडोल।॥१९॥ फूलेहिन नारद करतहो गान फूले हैं ऋषि मुनि शिव धरत ध्यान सरसरसही फूलडोल॥ फूलेहो वीणा बजावत हरि यश बखान मारयोकंस उग्रसेनकी फिरे आन संतन हितही फूलडोल॥२०॥ फूलेहि न कहत हरि मुनि कह्यो जाय तुरतही मोहिं तुम लेहु बोलाय सरस रसही फूलडोल। फूल्योहिन जघानोमे असुर आय नदी यमुनामैहीं देहुँ बहाय संतन हितही फूलडोल॥२१॥ फूलहिं न उग्रसेन शिरछत्र धराय फूले मथुरा नरनारि आनँद देहु बढाय सरसरसही फूलडोल। फूले हि न पितु मातु मिल्यो म्यतवधाय दुसह दुख बिसराउ सुख देहु जाय संतनहितही फूलडोल॥२२॥ फूलेहि नमुनि सुनि ज्ञान हरषाय


* धत्तेश्यामलकंचुचूचकगलेमुक्तावलमिंशुकं शोणाभंवरकंकणानिकरयोः पादद्वयोनूपुरी चंद्रास्यामदविह्वलासकरुणां भाषां भृशं भाषती चैषा रामगिरी दिनांतसमये रामेण गीता पुरा॥ रामगिरी॥