पृष्ठ:सूरसागर.djvu/५४९

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(१६६) सूरसागर। .. . ... .. .' मिलि जु गये मनोपय पानी है निवरत नहीं निवरे ॥ लागे संग : मतंग ‘मत्तज्यों। घिरत न कैसेहु रे । सूर प्रेम अंकुर आशा जिय दै नहिं इत उत हेरे ॥ ९७॥ सारंग ॥ सब मुरझानीरी चलिवेकी सुनत भनक । गोपी ग्वाल नैन जल ढारत गोकुल द्वैरह्यो मूदचनक इक ॥ यह अक्रूर कहांते आयो दाहन लाग्यो देह दनक । सूरदास स्वामीके बिछुरत घट नहिं रैहैं प्राणतनक॥९८॥रामकलीअनलते विरह अग्नि अति ताती।माधो चलन कहत मधुवनको सुने तपै अतिछातीन्याइहि नागरि नारि विरहवश जरत दिया ज्यों वाती । जे जरि मरे प्रगट पावक परि तेत्रिय अधिक सुहाती ॥ ढारति नीरनयन भरि भरि सब व्याकुलता मद माती। सूर व्यथा सोई पैजानै श्याम सुभग रंगराती ॥९९॥ आसावरी ॥ श्यामगए साख प्राण रहेंगे। अरसपरस ज्यों बातें कहियत तैसेहि बहुरि कहेंगे ॥ इंदुवदन खग नैन हमारे जानति और चहेंगे। वासर निशि कहुँ होत नन्यारे विठुरन हृदय सहगाएक कहो तुम आगे वाणी श्याम न जाहि रहेंगे।सूरदास प्रभु यशुमति को तजि मथुरा कहा लहँगे॥२५००॥मलार हरि मोसों गौनकी कथा कही । मन गह्वर मोहिं उतर न आयो हौ सुनि सोचिरही ॥ सुन संखी सत्यभावकी वात विरह वेलि उलही। करवत चिह्न कहै हरि हमकों ते अव होत सही । आजु संखी सपनेमै देख्यो सागर पालि ढही । सूरदास प्रभु तुम्हरो गवन सुनि जलज्यों जाति वही ॥१॥ मारू ॥ बहुत दुख पैयतुहै यह बात। तुम जु सुनतही माधो मधुवन सुफलकसुत सँग जात ॥ मनसिज व्यथा दहति दावानल उपजीहै या गात । सूधौ कहाँ तब कैसे जी, निज चलिहौ उठि प्रात ॥ जोपै यहै कियो चाहतहै मीचु विरह शरघात।सूरश्याम तौ तब कत राखी गिरिकरलै दिनसात२॥अक्रूरवचन।।रामकली देख अक्रूर नर नारि विलख्यो । धनुभैजन यज्ञहेत बोले इनहि और डर नहीं सवन कहि संतोख्यो महरि व्याकुल दौरि पाँइ गहि लैपरी नंद उपनंद सँग जाहु लैकै । राजको अंशलिखि लेउ दूनो. देउँ मैं कहा करौं सुत दुहुनि देकै ॥ कहति ब्रजनारि नैनननीर ढारिकै इननको काज मथुरा कहाहै । सूर नृपक्रूर अक्रूर क्रूरै भयो धनुष देखन कहत कपटी महाहै ॥३॥ यशोदा विनय अफूरमति सारंग ॥ मेरे कमलनयन प्राणते प्यारे । इनको कौन मधुपुरी बैठत राम कृष्ण दोऊ जन वारे । यशुदा कहै सुनहु सुफलकसुत मैं पयपान जतन करिपारे ॥ ए कहा जानहिं सभा राजकी ए गुरुजन विप्रौ न जुहारे।मथुरा असुर समूह वसतह करकृपाण योधा हथियारे। सूरदास स्वामी एल रिका इन कब देखे मल्ल अखारे॥ब्रजवासिनके सरवस श्याम । रेअक्रूर क्रूर बडवारे जीको जी मोहन बलराम ॥ अपनो लाग लेहु लेखो करि जे कछु राज अंशका दाम । और महरले संग सिधारे नगर कहा लरिकनको काम ॥ संतत साधः परम उपकारी सुनियत बडो तुम्हारो नामः ॥ यशोदा वचन सखी मति॥६॥ मलारासखोरी हो गोपालहि लागी । कैसे जियें वदन बिन देखे अनुदिन खिन अनुरागी ॥ गोकुल कान्ह कमल दल लोचन हरि सबहिनके प्राण । कौन न्याव अक्रूर कहतहै कहै मथुरा लै जान ॥ तुम अक्रूर बडेके ढोटा अति कुलीन मतिधीर । बैठत सभा बडे राज नके जानतहो परपीर लिजे लागु यहांते अपनो जो कछु राजको अंश । नगर बोलि ग्वालनके लरिका कहा करैगो कैंस ॥ मेरे दो रामै धन माई माधोई सब अंग । बहुरि सूरही कापै मांगों पैठि पराए संग॥६॥रामकली । मेरो माई निधनीको धन माधो। वारंवार निरखि सुख मानत तजत नहीं पलआधो ॥ छिन छिन परसत अंश मिलावत प्रेम प्रगटदै लाधौ। निशि दिन सुचंद्र चको, रकी छवि जनु मिटै नदरशकी साधौ ॥ करिहै कहा अकूर हमारो दैहै प्राण अगाधों । सूर श्याम |