पृष्ठ:सूरसागर.djvu/६८

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सूरसागर-सारावली।

जनि यांचे व्रजपति उदार अति याचक फिर न कहावै ॥ ४१२ ॥ नानाविधिके विविध खिलौना रत्नन अधिक अमोले। ताको लेनगये मथुराको आनक दुन्दुभि वोले ॥४१३ ॥ वेगजाव गोकुल तुम अवहीं सुनियतहै उतपात । सुनि ब्रजराज तुरत परआये जियमें अति अकुलात ।। ॥४१४॥ प्रथम पूतना कंस पठाई अतिसुन्दर वपुधारय । घसिकै गरल लगाय उरोजन कपट न कोउ निहारयउ ॥४१॥ लिये उठाय श्यामसुंदरको थन गहिकै मुखलीन्हों । लीन्हें खेंच प्राण विप पय युत देह विकल तव कीन्हों॥ ४६॥ छोडछोड कहि परी धरणिपर कर चरणन जु पसारायोजन डेढ विटावेली सब चूरचूर करडार॥१७॥ताको जननीकीगति दीन्हीं परमकृपाल गु पाल । दीन्हीं फूंक काठतन वाको मिलके सकल गुवाल ॥ ४१८॥ तवहीं नन्दरायजू आये कौतुक सुनि यह भारी। विस्मितभये देवने राख्यो वालक यह सुखकारी ॥४१९ ॥ विप्रवुलाय वेदध्वनि कीन्हीं रक्षा बहुत कराई । आरति विविध उतार महरजू मंगल करत बधाई ॥४२०॥ एकदिना हरि लई करोटी सुनिहरपी नँदरानी । विप्रबुलाय स्वस्तिवाचन करि रोहिणि नैन सिरानी ॥४२१ ॥ नित मंगल नित होत कुलाहल नितनित बजत बधाई । भादों देव छट्टिको शुभ दिन प्रकटभये बलभाई ॥ ४२२॥ वर्ष दिवस पहिले ब्रजमण्डल शेप महा वपु लीन्हों। अपनो धाम जान प्रकटो भुव रूप प्रकट निज कीन्हों ॥४२३॥ कंसनृपतिने शकट बुलायो लेकर वीरादीन्हों। आय नन्दगृह द्वार नगरमें रूप शकटको कीन्हों ।। ४२४ ॥ मारीलात श्याम पलनाते परयर धरणि भहराय । जहँ जहँते दौरे ब्रजवासी श्यामहि लियो उठाय ॥ ४२५ ॥ वच्छपुच्छ लैदियो हाथपर मंगलगीत गवायो। यशुमतिरानी कोखिसिरानी मोहन गोद खिलायो॥ ४२६ ॥ इकदिन स्तन पानकरावति यशुमति अति वडभागी। बदन पसारि विश्व दिखरायो क्षणइक मुरछा जागी ॥ ४२७ ॥ तृणावर्तविपरीति महाखल सो नृपरायपठायो । चक्रवातकै सकल घोपमें रज धुंधरहे छायो॥ ४२८ ॥ चल्यो उठाय गुपाल व्योममें तव हरि कंठ गहायो । पटक्यो शिला खरिकके आगे क्षण निरजीव करायो ॥ ४२९ ॥ गर्गराज मुनिराज महाऋपि सो वसुदेव पठायो। नाम करण ब्रजराज महरपर आत आनन्दितायो । ४३०॥ नामकरण कीन्हों दोहुन को नारायण समभापे तुम्हरेदुःख मिटावनकारण पूरणको अभिलापे ॥ ४३१॥ राम कृष्ण अवतार मनोहर भक्तनके हितकाज । वहुतहि काज करेंगे तुम्हरे सुनहु महर ब्रजराज ॥ ४३२॥ एकदिना पलना हरि पौढ़े नन्दमहरके द्वार । नँदरानी गृह कारज लागी नाहिंन लई सँभार ॥ ४३३॥ कंसनृपति इक असुर पठायो धरेउ कागको रूप । सन्मुख आय नयनदोउ जोरे देख्यो श्यामको रूप ॥४३४ ॥ कंठ चाप बहुवार फिरायो पटक्यो नृपके पास । एक याममें वचन कह्यो यह प्रकटभयो तुवनास ॥ १३६ ॥ यह कहिकै तनु त्याग कियो उन कंसनृपतिके आगे। भयो उदास सुहात न कुछ ये क्षण सोवत क्षण जागे॥ ४३६॥ एकदिना ब्रजराज महरजू और यशोदारानी। घुटुवन चलत श्यामको देखत बोलत अमृतवानी ।। ४३७ ॥ इतते नन्दमहर वोलतहैं उतते जननिवुलावत । सुन्दरश्याम खिलौना कीन्हों हँसि हँसि मोद बढ़ावत ॥ ४३८॥ शशिको देख और हरिठानी कर मनुहार मनावत । मधु मेवा पकवान मिठाई विविध खिलौना लावत ॥ ४३९॥ कमलनैनको महर यशोदा जलप्रतिविव दिखावत । फेरतहाथ.चन्द्र पकरनको नाहिंनहोत लखावत ॥ ४४०॥ देवावू दरशन आये लाल चन्द्रमणि दीन्हों। ताको देख और सब छोड़ी भोजनकी सुधि कीन्हों ॥ १४१॥ औटयो दूध कपूर मिलायो प्यावत कनक कटोरे। पीवत देखि रोहिणी यशुमति - - -