पृष्ठ:सूरसागर.djvu/६९

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। सूरसागर-सारावली। ... . ... डारतहै तृण तोरे ॥ ४४२॥ कछु दिन भये संग दोउ बालक बल मोहन दोउ भाई । चोरी करत | हरत दधि माखन लीला कहिय न जाई ॥ ४४३ ॥ सब ब्रजनारी उरहन आई ब्रजरानीके आगे। मैं नाहिंन दधिखायो याको शिशकै रोवन लागे॥ ४४४ ॥ एक दिना ब्रजपतिकी पौरी खेलतहार । ब्रजबाल । माटीखाय वदन दिखरायो चंचल नयन विशाल ॥ ४४५॥ सकल ब्रह्मांड उदर में देख्यो. ब्रज मंडल राताल । नन्द महर यशुदा रोहिणि पुनि धेनु सकल ब्रजम्वाल ॥ ४४६॥ हृदय ज्ञान । उपज्यो तब यशुमति पूरण ब्रह्म विशेखे । हरि उपजाई माया तब सब बहार पुत्र करि लेखे। ॥ ४४७॥ एकदिना दधि मथन करतही महर पोषकी रानी । हरि माग्यो माखन नहिं दीन्हों। तब मन में रिस ठानी॥ ४४८॥ फोरे भांड दही आंगनमें फैल परेउ अति भारी। दौरी पकर देत नहिं मोहन अति आतुर महतारी॥ ४४९ ॥ जानी विकल बहुत जननी को हरि पकराई : दीनी । बहुत दामलै बांधन लागी अंगुरी द्वै भई हीनी ॥ ४५ ॥ व्याकुल भई बधत नहिं मोहन दया श्यामको आई । ऊखल दाम बँधेहरि जाने गोपी देखन धाई ॥ ४५१ ॥ तोलौं बधे. देव । दामोदर जोलौं यह कृत कीन्हीं। देख दुखितलै सुत कुवेरके कृपादृष्टि कार दीन्हीं ॥ ४५२॥ नारद मुनिको शाप पायके श्याम दुई गति ताय । निकसे बीच अटक ऊखलमें श्यामरहे अटका य॥ ४५३ ॥ चरण परसि ते पुलकि भये भुव परे वृक्ष भहराय । भयो शब्द आघात स्वर्ग. लौं मुनि आये ब्रजराय ॥ ४५ ॥ स्तुति कार वे गये स्वर्गको अभय हाथ कार दीन्हों। बंधन छोर नंद बालकको लै उछंग कर लीन्हों ॥ ४५५ ॥ यशुमति जू सो लरै महर जू तुम क्यों बाँध्यो दाम । गर्गकहेउ मौहै नारायण आये हैं बलश्याम ॥ ४५६॥ यशुमति माय धाय उर लीन्हों राई लोन उतारो।लेत बलाय रोहिणी नीके सुंदर रूप निहारो॥ ४५७ ॥ कबहुँककर करताल बजाव त नानाभांति नचावत । कबहुँक दधि माखन के कारण आछी आर मचावत ॥ ४५८॥ बड़े गोप उपनन्द बुलाये नंद महर के धाम । कीन्हें मंत्र गोपसब मिलिकै जेहि विधि पूरण काम॥४५९ बहु उत्पात रहत है गोकुल नित प्रति कंस पठायो । अंत जाय कहुँ वास करेंगे बालक व बचा यो॥ ४६० ॥ अव वृन्दावन जाय रहेंगे जहँ वारुध तृण पानी । 'चले गोप अति ओप विराजें बोलत होहो वानी ॥४६॥ यमुना उत्तर आय वृन्दावन जहां सुखद हम राजै । गोवर्द्धन वृंदावन यमुना सघन कुञ्ज अति छाजें ॥ ४६२ ॥ वसे जाय आनंद उमँगसों गइयां सुखद चरावें । आयो दुष्ट वकासुर जान्यो हरि चित वात धरावें ॥ ४६३ । करि विचार छिनमें हार मारो सोवछरा: वनआज । तापाछे जो बकासुर आयो घात कियो ब्रजराज ॥ ४६४ ॥ वच्छ चरावत वेणु बनाव त गोप सखनके संग । सो देखत चतुरानन आये हार लीला रसरंग ॥ ४६५॥ छाक खात खवा वत ग्वालन सुन्दर यमुनातीर । ग्वाल मंडली मध्य विराजत हरि हलधर दोउ वीर ॥४६६॥ गाय गोप अरु बच्छ सबै विधि छिनहींमें हरिलीन्हों। सबको रूपभये हरिआपुन नेकविलम्ब न कीन्हों ॥४६७ जवहीं गर्वगयो चतुरानन अद्भुत चरितहिंदेख । परोधाय हरिपांय जोरिकर नाथ कृपा : करलेख ॥ १६८॥ स्तुतिकरी वेदविधि करिकै चतुरानन बहुभांति । अद्भुत चरित देख माधो. को हँसतसकल कलिकाति ॥ ४६९ ॥ गयेधाम अपने विधि सुखसों हरिआज्ञा सुखपाय । वर्ष ... दिवसलौं सर्वरूप हरि ब्रजवासिन सुखदाय॥४७०॥धेनु चरावनचले श्यामघन ग्वालमंडलीजोई। हलधरसंग छाकभरि काँवर करत कुलाहलशोर ॥ ४७१ ॥ क्रीड़ाकरत आप.वृन्दावन धेनु समूह नचावत । गोवर्धन पर बेणु बजावत फूलनभेष संवारत ॥ ४७२ ॥ कालीनाग नाथ हरिलाये % 3D -