पृष्ठ:सूरसागर.djvu/८

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- - - -- श्रीसूरदासजीका जीवनचरित्र। १६०७ मेंसे सरसठ वर्ष निकाल दीजिये तो १५४० सम्वत्के लगभग उनके जन्मका समय आया और इसके पीछे सम्बत् १६२० के लगभग उनकी मृत्यु मानलेनी चाहिये ।। सूरसागरके देखनेसे विदित होताहे कि, उस समयमें श्रीगोस्वामि हित हरिवंशजीको और स्वामि हरिदासजीके पूरे अभ्युदय का समयथा ओर उससमयके सब वैष्णवनमें प्रेमथा सूरदासजी लिखते हैं:- निशि दिन इयाम सेमें मैं तोहूँ । इहै कृपा कर दीजे मोहि ॥ नवनिकुंज सुखपुंजमें हरिवंशी हरिदासी जहाँ । हरि करुणा कार राखहु तहां । नित विहार आभार दे (पृष्ठ ३६२ पंक्ति १०)। ऐसा प्रतीत होताहे कि सूरदासजीने श्रीमद्भागवतको शृंखलापूर्वक एक समय में नहीं बनाईथी क्योंकि वातों इत्यादि में समय समय पर जो सवपद "संजन नैन रूप रस माते ।" आदि लिखेहें प्रायः वे सभी इसमें आगयेहैं, और पूरा पूरा भागवतका अनुवाद भी नहीं है बहुतसी कथा छोड़भादीहे और कई एक उपासनाके अनुसार बढ़ाभीदीहे कुछ और पुराणोंसे भी सहायताली है आप लिखते :- "वंदन रन विधि सवे कह्यो विधि दियो ऋपिन्ह बताइ । व्यास त्रिपद घावनपुराण कह्यो सूरसोई गाइ ॥"(पृष्ट ३३३ पंक्ति २३) एक सूरदास ओर हुएहें वह अपना नाम कवितामें सूरदास मदनमोहन रखतेथे सूरदासजीका नाम भारतवर्ष में ऐसा प्रसिद्ध होगया कि सभी अंधोंको लोग सूरदास कहतेहैं और बहुतसे लोग आप कविता करिके सूरदासजीकी छाप उसमें रखदेतेहैं जिसमें वह कविता प्र- सिद्ध होजाय श्रीयुत बाबू अक्षयकुमार दत्तने भ्रमवश अपने बंगला ग्रंथ “भारतवर्षीय उपासक सम्प्रदाय में लिख दिया कि जितने अंधे फकीर एकतारा लेकर गाते हुये घूमते फिरते सब सूरदासके सम्प्रदाय में हैं। सूरदासजीका जीवनचरिन आगे दियेहुये लेखोंसे प्रगट होजायगा अतएव हम यहाँ कुछ अधिक लिखना आवश्यक नहीं समझते ॥ पूज्यपाद भारतेन्दु बाबू हरिचन्द्रनी लिसित नोट सूरदासनीका । संसारमें जो लोग भापाकाव्य जानते होंगे यह सूरदासजीको अवश्य जानते होंगे और उसी तरह जो लोग थोड़ेभी वेष्णव होंगे. वह इनका थोड़ा बहुत जीवनचरित्र भी अवश्य जानते होंगे. चौरासी वार्ता, उसकी टीका, भक्तमाल और उसकी टीकामें इनका जीवन विवृत कियाहै. इन्हीं ग्रंथोंके अनुसार संसारको (ओर हमकोभी (१) विश्वासथा कि ये सारस्वत ब्राह्मणहैं, इनके पिता का नाम रामदास, इनके माता पिता दरिद्रीथे, ये गऊ घाट पर रहतेथे, इत्यादि. अब सुनिये एक पुस्तक सूरदासजीके दृष्टिकूट पर टीका (टीकाभी सम्भव होताहै उन्हींकीहै, क्योंकि टीकामें जहाँ अलंकारोंके लक्षण दियह वह दोहे और चौपाई भी सूरनामसे अंकित.) मिली है. इस पुस्तकमें ११६ दृष्टिकूटके पद अलंकार और नायिकाके क्रम हें और उनका स्पष्ट अर्थ और उनके अलंकार नायिका इत्यादि सब लिखे हैं. इस पुस्तकके अंतमें कविने अपना जीवनचरित्र दियहि, जो नीचे प्रकाश किया जाताहे. अब इसको देखकर सूरदासजीके जीवनचरित्र और । (१) शिवधनसुधा प्राचीन पुस्तफावलीकी दूसरी निल्दमें सूरदासजीफा जीवनचरित्र देखो। %3-