अपने विषय में किसी से कुछ मत कहना, नहीं तो, विधवाओं में हलचल मच जायगी।
सुमन---आप जैसा उचित समझे करें मैं तैयार हूँ।
विठ्ठल-सन्ध्या समय चलना होगा।
विट्ठलदास के जाने के थोड़ी ही देर बाद दो वेश्याएँ सुमन से मिलने आयीं। सुमन ने कह दिया, मेरे सिर में दर्द है। सुमन अपने ही हाथ से भोजन बनाती थी। पतित होकर भी वह खाना पान में विचार करती थी। आज उसने व्रत करने का निश्चय किया था। मुक्ति के दिन कैदियों को भी भोजन अच्छा नहीं लगता।
दोपहरको धाडियों का गोल आ पहुँचा। सुमन ने उन्हें भी बहाना करके टाला। उसे अब उनकी सूरत से घृणा होती थी। सेठ बलभद्रदास के यहाँ से नागपुरी संतरे की एक टोकरी आयी, उसे सुमन ने तुरन्त लौटा दया। चिम्मनलाल ने चार बजे अपनी फिटिन सुमन के सैर करने को भेजा उसने उसको भी लौटा दिया।
जिस प्रकार अन्धकार के बाद अरुण का उदय होते, ही पक्षी कलरव करने लगते है और बछड़े किलोलों में मग्न हो जाते है, उसी प्रकार सुमन के मन में भी क्रीड़ा करने की प्रबल इच्छा हुई। उसने सिगरेट की एक डिबिया मँगवाई और वारनिश की एक बोतल मँगाकर ताकपर रख दिया और एक कुर्सी का एक पाया तोड़कर कुर्सी छज्जे पर दीवार के सहारे रख दी। पाँच बजते बजते मुंशी अबुलवफा का आगमन हुआ। यह हजरत सिगरेट बहुत पीते थे। सुमन ने आज असाधारण रीति से उनकी आवभगत की और इधर-उधर की बातें करने के बाद बोली, आइये आज आपको वह सिगरेट पिलाऊँ कि आप भी याद करें।
अबुलवफा-नेकी और पूछ पूछ।
सुमन-देखिये, एक अंग्रेजी दूकान से खास आपकी खातिर मँगवाया है। यह लीजिये।