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सेवासदन
 


अबुलवफा-तब तो मैं भी अपना शुमार खुश-नसीबों मे करूँगा। वाहरे मैं, वाहरे मेरे साजे जिगर की तासीर!

अवुलवफा ने सिगरेट मुँह में दबाया। सुमन ने दियासलाई की डिबिया निकालकर एक सलाई रगड़ी। अवुलवफा ने सिगरेट को जलाने के लिए मुँह आगे बढ़ाया, लेकिन न मालूम कैसे आग सिगरेट में न लगकर उनकी दाढ़ी में लग गई। जैसे पुआल जलता है, उसी तरह एक क्षण में दाढ़ी आधी से ज्यादा जल गई। उन्होने सिगरेट फेंककर दोनो हाथों से दाढ़ी मलना शुरू किया। आग बुझ गई मगर दाढ़ी का सर्वनाश हो चुका था। आइने में लपक कर मुँह देखा दाढ़ी का भस्मावशेष उबाली हुई सुथनी के रेश की तरह मालूम-हुआ। सुमन ने लज्जित होकर कहा, मेरे हाथों में आग लगे। कहाँ से कहाँ मैंने दियासलाई जलाई।

उसने बहुत रोका, पर हँसी ओंठ पर आ गई। अवुलवफा ऐसे खिसियाये हुए थे मानों अब वह अनाथ हो गये। सुमन की हँसी अखर गई। उस भोडी सूरत पर खेद और खिसियाहटमका अपूर्व दृश्य था। बोले, यह कबकी कसर निकाली?

सुमन-मुन्शीजी, मैं सच कहती हूँ, यह दोनों आँखें फूट जाय अगर मैने जानबूझकर आग लगाई हो। आपसे बैर भी होता तो दाढ़ी बेचारी ने मेरा क्या बिगाड़ा था?

अबुल--माशूकों की शेखी और शरारत अच्छी मालूम होती है, लेकिन इतनी नहीं कि मुँह जला दे। अगर तुमने आग से कहीं दाग दिया होता तो इससे अच्छा था। अब यह भुन्नास की सी सूरत, लेकर मैं किसे मुँह दिखाऊँगा। वल्लाह! आज तुमने मटियामेट कर दिया।

सुमन--क्या करूँ? खुद पछता रही हूँ। अगर मेरे दाढ़ी होती तो आपको दे देती। क्यों, नकली दाढ़ियाँ भी तो मिलती है?

अबुल-सुमन, जस्म पर निमक न छिड़को। अगर दूसरे ने यह हरकत की होती तो आज उसका खून पी जाता।

सुमन--अरे, तो थोड़े में बाल ही जल गये या और कुछ महीने दो