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पृष्ठ:सेवासदन.djvu/१८२

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सेवासदन
२०७
 

पद्मसिंह--लेकिन आप यह तो मानते है कि जाति के हितमे स्वार्थसे पार्थक्य होनी चाहिए।

भगतराम-जी हाँ,इसे सिद्धन्तरूपसे मानता हूँ,पर इसे व्यवहार में लाने की शक्ति नहीं रखता। आप जानते होंगे, मेरा सारा कारबार सेठ चिम्मनलालकी मदद से चलता है। अगर उन्हे नाराज कर लूं तो यह सारा ठाट बिगड़ जाय। समाज में मेरी जो कुछ मान-मर्यादा है वह इसी ठाटबाट के कारण है।विद्या और बुद्धि है ही नहीं, केवल इसी स्वांग का भरोसा है। आज अगर कलई खुल जाय तो कोई बात भी न पूछे। दूध की मक्खी की तरह समाज से निकाल दिया जाऊँ। बतलाइये शहर में कौन है जो केवल मेरे विश्वासपर हजारों रुपये बिना सूद के दे देगा, और फिर केवल अपनी ही फिक्र तो नहीं है। कम से कम ३०० रु० मासिक के गृहस्थीका खर्च है जाति के लिए मैं स्वयं कष्ट झेलनके लिए तैयार हूं, पर अपने बच्चो को कैसे निरवलम्ब कर दूँ।

हम जब अपने किसी कर्त्तव्य से मुँह मोड़ते है तो दोष से बचने के लिए तो ऐसी प्रबल युक्तियां निकालते है कि कोई मुँह न खोल सके। उस समय हम संकोच को छोड़कर अपने सम्बन्ध ऐसी-ऐसी बाते कह डालते है कि जिनके गुप्त रहने ही में हमारा कल्याण है। लाला भगतराम के हृदय में यही भाव काम कर रहा था। पद्मसिंह समझ गये कि इनसे कोई आशा नहीं। वोले, ऐसी अवस्था में आप पर कैसे जोर दे सकता हूँ। मुझे केवल एक वोट की फिक्र है, कोई उपाय बतलाइये, कैसे मिले?

भगत-कुंवर साहब के यहाँ जाइये। ईश्वर चाहेगे तो उनका वोट आपको मिल जायगा। सेठ बलभद्रदास ने उनपर ३०००) की नालिश की है। कल उनको डिगरी भी हो गई। कुंवर साहब इस समय बलभद्रदास से तने हुए है, वश चले तो गोली मार दे। फंसाने का एक लटका आपको और बतायें देता हूँ। उन्हें किसी सभा की प्रधान बना दीजिये। बस उनकी नकेल आपके हाथ में हो जायेगी।

पद्मसिहने हंसकर कहा, अच्छी बात है; उन्हीं के यहाँ चलता हूँ।