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पृष्ठ:सेवासदन.djvu/२२

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सेवासदन २३


यह सब नये नये गहने बनवाती है, नये-नये कपड़े लेती है और यहाँ रोटियो के लाले है। क्या संसार में मैं ही सबसे अभागिनी हूँ? उसने अपने घर यही सीखा था कि मनुष्य को जीवन में सुख भोग करना चाहिए। उसने कभी वह धर्म चर्चा न सुनी थी, वह धर्म-शिक्षा न पाई थी, जो मन में सन्तोष का बीजारोपण करती है। उसका हृदय असन्तोष से व्याकुल रहने लगा।

गजाधर इन दिनो बडी मेहनत करता। कारखाने से लौटते ही एक दूसरी दूकान पर हिसाब-किताब लिखने चला जाता था। वहाँ से ८ बजे रात को लौटता। इस काम के लिए उसे ५) और मिलते थे। पर उसे अपनी आर्थिक दशा में कोई अन्तर न दिखाई देता था। उसकी सारी कमाई खाने पीने में उड़ जाती थी। उसका सञ्चयशील हृदय इस ‘खा पी बराबर' दशा में बहुत दुःखी रहता था। उस पर सुमन उसके सामने अपने फूटे कर्म का रोना रो-रोकर उसे और भी हताश कर देती थी। उसे स्पष्ट दिखाई देता था कि सुमन का हृदय मेरी ओर से शिथिल होता जाता है। उसे यह न मालूम था कि सुमन मेरी प्रेम-रसपूर्ण बातो से मिठाई के दोनों को अधिक आनन्दप्रद समझती है। अतएव वह अपने प्रेम और परिश्रम से फल न पाकर, उसे अपने शासनाधिकार से प्राप्त करने की चेष्टा करने लगा। इस प्रकार रस्सी मे दोनो ओर से तनाव होने लगा।

हमारा चरित्र कितना ही दृढ हो, पर उसपर सगतिका असर अवश्य होता है। सुमन अपने पड़ोसियो को जितनी शिक्षा देती थी उससे अधिक उनसे ग्रहण करती थी। हम अपने गार्हस्थ्य जीवन की ओर से कितने बेसुध है। उसके लिए किसी तैयारी किसी शिक्षा की जरूरत नही समझते। गुडियाँ खेलने वाली बालिका, सहेलियो के साथ विहार करने-वाली युवती, गृहिणी बनने के योग्य समझी जाती है। अल्हड बछडे़ के कन्धे पर भारी जुआ रख दिया जाता है। एसी दशा में यदि हमारा गार्हस्थ्य जीवन आनन्दमय न हो तो कोई आश्चर्य नही। जिन महिलाओ के साथ सुमन उठती-बैठती थी,वे अपने पतियो को इन्द्रियसुखका यन्त्र