मिली हो, लेकिन मैं शीघ्र ही किसी और नीयत से नहीं तो उनका प्रतिवाद कराने के ही लिए इस खबर को प्रकाशित कर दूँगा?
सदन—यह खबर आपको कहाँँ से मिली?
प्रभाकर—इसे मैं नहीं बता सकता, लेकिन आप शर्माजी से कह दीजियेगा कि यदि उनपर यह मिथ्या दोषारोपण हो तो मुझे सूचित कर दे। मुझे यह मालूम हुआ है कि इस प्रस्ताव के बोर्ड आने से पहले शर्माजी हाजी हाशिम के यहाँँ नित्य जाते थे। ऐसी अवस्था मे आप स्वयं देख सकते है कि मैं उनकी नीयत को कहाँ तक निस्पृह समझ सकता था?
सदन का क्रोध शान्त हो गया। प्रभाकरराव की बातों ने उसे वशीभूत कर लिया, वह मनमे उनका आदर करने लगा और कुछ इधर-उधर की बाते करके घर लौट आया। उसे अब सबसे बड़ी चिन्ता यह थी कि क्या शान्ता सचमुच आश्रम में लाई गई है?
रात्रि को भोजन करते समय उसने बहुत चाहा कि शर्मा जी से इस विषय मे कुछ बातचीत करे, पर साहस न हुआ। सुमन को तो विधवा-आश्रम में जाते उसने देखा ही था, लेकिन अब उसे कई बातों का स्मरण करके जिनका तात्पर्य अबतक उसकी समझ में न आया, था, शान्ता के लाये जाने का सन्देह भी होने लगा।
वह रातभर विकल रहा। शान्ता आश्रम में क्यो आई है? चाचा ने उसे क्यों यहाँ बुलाया है? क्या उमानाथ ने उसे अपने घर में नहीं रखना चाहा? इसी प्रकार के प्रश्न उसके मन में उठते रहे। प्रात काल वह विधवा-आश्रम वाले घाट की ओर चला कि अगर सुमन से भेंट हो जाय तो उससे सारी बात पूछूँ। उसे वहाँ बैठे थोड़ी ही देर हुई थी कि सुमन आती हुई दिखाई दी। उसके पीछे एक और सुन्दरी चली आती थी। उसका मुखचन्द्र घूँघट से छिपा हुआ था।
सदन को देखते ही सुमन ठिठक गई। वह इधर कई दिनों से सदन से मिलना चाहती थी। यद्यपि पहले उसने मन में निश्चय कर लिया था कि सदन से कभी न बोलूँगी, पर शान्ता के उद्धार का उसे इसके सिवा कोई