नया दौर अब उन्नीसवीं शताब्दि के प्रारम्भिक दिन थे। संसार में जीवन का नया दौर चल रहा था। भारत और यूरोप में सर्वत्र उन दिनों खून- खराबी का बाजार गर्म था। मुद्दे की बात यह थी कि इन दिनों ब्रिटेन विश्व का राजनैतिक नेता बन रहा था। नई दुनिया प्रकट हो रही थी- और ब्रिटेन अन्य उद्ग्रीव जातियों को पीछे धकेल कर उस पर अपना राजनैतिक प्रभुत्व स्थापित करने की प्राण पण से चेष्टा कर रहा था। रानी एलिजाबेथ के राज्य काल से यह नया दौर प्रारम्भ हुा । स्पेन के अजेय जहाज़ी बेड़ों को ड्रेक और हाकिन्स समुद्र गर्भ में लीन कर चुके थे, वालट्रोम्प और रुटिपर के निर्णायक युद्ध हो चुके थे। अंग्रेज़ी जल सैन्य अजेय घोषित हो चुकी थी। लाँग पार्लमैण्ट और दूसरे चार्ल्स की इंगलैंड से लड़ाइयाँ हो चुकी थीं। कामवेल स्पेन को कुचल चुका था। और ब्रिटेन ने अथाह स्वर्ण-भण्डार एकत्र कर चौदहवें लुई को ठोकर मार कर उसे नीचा दिखाया था। और अब भू-सम्पत्ति के मुक़ाबिले इंगलैंड में बड़ी-बड़ी प्रौद्योगिक संस्थाएँ स्थापित हो चुकी थीं। जिस ने राज्य-शासन का समूचा ढाँचा ही बदल दिया था। और रानी एन के शासन काल में इंगलैंड सब राष्ट्रों का सिरमौर बन चुका था। ये सब महाकार्य अठारहवीं शताब्दि के समाप्त होते-होते हो चुके थे। और अब अंग्रेज़ रानी एलिजाबेथ के काल के साधारण इंगलैंड के निवासी न रह गए थे, अब वे ब्रिटिश साम्राज्य की रचना करने में संलग्न थे। इस नए दौर में उन्होंने दो महाकर्म किए थे-कनाडा और आस्ट्रेलिया के सीमा रहित विस्तार पर आधिपत्य स्थापित किया था, और उनकी केवल एक व्यापारिक कम्पनी ने बीस करोड़ भारतीयों पर विजय प्राप्त कर ली थी। संसार इन दोनों ही कामों को आश्चर्य चकित हो देख रहा था। उस समय अंग्रेजों ने यह नहीं सोचा था कि क्लाइव और हेस्टिग्स ने यह ११८
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