सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/११६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सृष्टिक्रम के विरुद्ध घोर कर्म किया है। जो एक शताब्दि की प्रत्यक्ष सफलता के बाद अन्त में निष्फल हो जायगा । उस समय वे समझते थे कि हम भारत में पूर्व और पश्चिम के मेल का सूत्रपात कर रहे हैं । परन्तु आश्चर्यजनक बात यह थी कि उस काल एक ओर जहाँ ब्रिटिश राष्ट्र का एक हाथ भूमण्डल के भविष्य की ओर फैल रहा था, और जो यूरोप तथा नई दुनिया के बीच मध्यस्थ का पद ग्रहण कर रहा था-अपना दूसरा हाथ अत्यन्त प्राचीन काल की ओर फैलाता हुआ एशिया का विजेता और महान् मुग़ल साम्राज्य का उत्तराधिकारी बन रहा था । एक तरफ़ वह एक ही काल में एशिया में स्वेच्छाचारी, और आहोलाचा में-प्रजासत्ता परायण ; पूर्व में संसार की सब से बड़ी शक्ति इस्लाम और हिन्दुओं की मंदिरों की सम्पत्ति का संरक्षण और पश्चिम में स्वतन्त्र विचारों और आध्यात्मिक मत का सब से बड़ा समर्थक, मध्य एशिया में रूस के बढ़ते हुए क़दम को रोकने के लिए शक्तिशाली साम्राज्य का संगठन कर्ता, और क्वीन्सलैंड तथा मनीटोवा में स्वतन्त्र उपनिवेशों का प्रस्थापक बन रहा था । संक्षेप से कहा जा सकता है, कि सृष्टि के प्रारम्भ से कभी किसी राष्ट्र ने इतना भारी दायित्व अपने ऊपर नहीं लिया था, न कभी किसी एक देश की जनता के निर्णय के उपर भूमण्डल के सभी भागों के इतने भारी प्रश्नों का-जिन के लिए सभी प्रकार के ज्ञान और शक्ति की आवश्यकता होती है-- दायित्व का भार पड़ा था, जितना इस काल में ब्रिटेन के क्षुद्र टापू के मुट्ठी भर निवासियों पर था । सफ़ेद शहनशाह दिल्ली के रेजीडेण्ट कर्नल विक्टरलोनी के बंगले पर उस दिन बड़ी बहार थी। उसी दिन उन्हें दिल्ली की सेनाओं का प्रधान नियुक्त किया गया था। अब वह गोरों की एक पल्टन और चार कम्पनियाँ देशी पल्टन और एक पल्टन मेवातियों का अध्यक्ष था, जो खास तौर पर दिल्ली की ११६