पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/११७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रक्षा के लिए छोड़ी जाने वाली थी। यह अंग्रेज़ कनल बड़ा मौजी जीव था। वह दिल्ली में ठेठ मुसलमान रईस की भाँति रहता और मुसलमानी पोशाक पहनता और मुसलमान रण्डियों से आशनाई रखता था। दिल्ली की मशहूर रण्डियाँ उसकी नौकर थीं। इसके अतिरिक्त उर्दू बाज़ार की उस्तानियाँ, मुग़लानियाँ और महरियाँ भी उसके यहाँ आती-जाती रहती थीं। वह सभी को दिल खोल कर इनाम-इकराम देता-और बहुत फ़सीह उर्दू में बातचीत करता था। पर असल हक़ीक़त यह थी कि वह उनके ज़रिये शहर और लाल क़िले के राई-रत्ती हाल-चाल जानता रहता था । वास्तव में दिल्ली में उसकी स्थिति बहुत ही नाजुक थी। सारी दिल्ली और बादशाह तथा बादशाह से सम्बन्ध रखने वाले रईसों और आम आदमियों पर भी उसे नज़र रखनी थी। वास्तव में उसके ऊपर इस समय ईस्ट-इण्डिया कम्पनी का सब से भारी ज़िम्मेदारी का काम आ पड़ा था । आज का जल्सा खास तौर पर फील्ड मार्शल जनरल लार्ड लेक के गुप्त हुक्म से किया जा रहा था। इस जल्से में उसे सहारनपुर के पद- च्युत नवाब बब्बू खाँ को खुश करने का हुक्म मिला था। जो सिंधिया का एक जागीरदार था, पर दिल्ली से सिंधिया का प्रभाव हटते ही नवाब को भी पदच्युत करके उस की पैन्शन कर दी गई थी। उसी पदच्युत नवाब बब्बू खाँ को अपने अधीन करने के लिए होल्कर सहारनपुर में जोड़-तोड़ लगा रहा था । क्योंकि इसके साथ रुहेलखण्ड की समूची रुहेलों की शक्ति उसके साथ आ लगती थी। परन्तु वह आवारा, मूर्ख और दब्बू नवाब न अपनी कुछ ज़िम्मेदारी समझता था, और न उसे राजनीति का ही कुछ ज्ञान था। शराब पीना, पतंगें उड़ाना या तीतर-बटेर लड़ाना या नालायक़ मुसाहिबों के साथ खुशगप्पियाँ उड़ाना उसका धन्धा था। जो पैन्शन वह पाता था, वह उसी में खुश था, क्योंकि उसे उसके लिए कुछ भी न करना पड़ता। उन दिनों अमीर लोग पैन्शनों और जागीरों की आमदनी पर ही सब प्रकार की लन्तरानियाँ किया करते थे। अंग्रेज़ भी इस बेवकूफ नवाब के प्रभाव को जानते थे। वे नहीं चाहते थे-कि वह १२.