होल्कर जैसे दुश्मन के हाथ लगे--इसी से वे उसे सहारनपुर से दिल्ली उड़ा लाए थे, और इसी की गंध मूंघते हुए चौधरी दिल्ली की गलियों में खाक छानते फिर रहे थे। सही अर्थों में इसी को कहते हैं-गधे को बाप बनाना । उन दिनों अंग्रेज़ खासतौर पर इस काम में खूब होशियार थे। कर्नल आक्टरलोनी का रंग एकदम सफेद, क़द लम्बा, आँखें नीली, बाल सुर्ख और मूछे बहुत छोटी कटी हुई । वह इस समय आवे खाँ का अंगरखा पहने, चिकन की नीमास्तीन डाटे, चूड़ीदार चुस्त पायरवाँ, और सुर्ख रेशमी कमरबन्द कमर में कसे और सिर पर लखनवी दुपल्लू लैसदार टोपी पहने अच्छा खासा नवाब जंच रहा था। स्वास्थ्य उसका बहुत अच्छा था, और यह देशी लिबास उस पर फबता था। वह इत्मीनान से मसनद पर शरीर का बोझ डाले–हुक्के की सटक हाथ में लिए पदच्युत नवाब बब्बू खाँ से धीरे-धीरे बातचीत कर रहा था। शराब के जाम आते जाते थे और वह स्वयं पीने की अपेक्षा अपने इस लायक दोस्त को पिलाना ज्यादा ज़रूरी समझ रहा था । नवाब बब्बू खाँ भी इस वक्त अपने को सवारों में समझ रहे थे। अपनी हैसियत वे भूल गए थे और सचमुच नवाब की भाँति बैठे मुश्की
पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/११८
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