पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१४६

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इसलिए अफग़ानिस्तान के बादशाह और वहाँ के दरबार ने एलफिस्टन को काबुल में घुसने की इजाजत नहीं दी, और न बादशाह ने उससे मुलाक़ात करना मंजूर किया। परन्तु एलफिंस्टन ने बहुत मीठी- मीठी बातें कीं, और उन्हें विश्वास दिलाया कि मेरा उद्देश्य आपकी मदद करने और अंग्रेजों के साथ दोस्ती के सम्बन्ध पैदा करना है। आखिर शाहशुजा ने एलफिंस्टन से पेशावर में आकर मुलाक़ात की। और पूछा- "आपका यहाँ मेरे मुल्क में आने और मुझ से मुलाक़ात करने का मकसद क्या है ?" "मैं प्रानरेबुल कम्पनी की सरकार की ओर से आपको यह सूचित करने आया हूँ कि अफग़ानिस्तान को रूस, फ्रांस और ईरान, तीनों से खतरा है। इसलिए मेरी प्रार्थना है कि आप फ्रांसीसियों और ईरानियों को अपने राज्य में न घुसने दें। और यदि ये लोग भारत पर हमला करना चाहें, तो आप उन्हें रोकने में अंग्रेजों को मदद दें।" "जब किसी के घर में आग लगी हो तो उसे दूर का डर देखने की फुर्सत नहीं मिल सकती। इस वक्त अफग़ानिस्तान घरेलू बग़ावतों की मुसीबतों से घिरा हुआ है इसलिए यदि अंग्रेज़ हमारी दोस्ती का दम भरना चाहते हैं तो वे पहले अफग़ानिस्तान की बग़ावतों को शांत करने में मेरी मदद करें।" यह एक सीधा सवाल था, जिसका जवाब एलफिंस्टन जैसे चतुर, चालाक अंग्रेज़ के दिमाग़ में भी हाज़िर न था। उसने कहा- "मुझे अफ़सोस है कि आनरेवुल कम्पनी की सरकार ने मुझे इस मसले पर बातचीत करने का अधिकार नहीं दिया है। और मैं ऐसी किसी मदद का आप से वादा नहीं कर सकता।" इस पर अफगानिस्तान के वजीर मुल्ला जफ़र ने गुस्सा होकर कहा-“यह एक अजीब बात है कि अंग्रेज़ अपने दुश्मनों के खिलाफ़ तो शाहे-काबुल की मदद चाहते हैं लेकिन वे काबुल के बादशाह को उसके दुश्मनों के खिलाफ मदद देना नहीं चाहते। इसका साफ़ यह मतलब है १५०