- काबुल जिन मुसीबतों में फंसा हुआ था, वे सब अंग्रेजों ही की पैदा की हुई थीं। अफग़ानिस्तान के अंदर इन्हीं सब उपद्रवों को खड़ा करने के के लिए महदी अली खाँ और सर मालकम को ईरान भेजा गया था, और ईरान की सरकार को एक नक़द रक़म भी दी गई थी। शाहे महमूद ने इस समय शाहशुजा के खिलाफ़ बग़ावत खड़ी कर रखी थी, और शाहशुजा तथा शाहे महमूद दोनों को जमान शाह के विरुद्ध भड़का कर अंग्रेजों ने ईरान से अफ़ग़ानिस्तान भिजवा दिया था। इसके अतिरिक्त हाल ही में अंग्रेज़ों ने रणजीतसिंह को भी अफ़ग़ानिस्तान के विरुद्ध भड़का दिया था । ऐसी हालत में एलफिंस्टन के पास शाहे- काबुल के प्रश्न का कोई जवाब ही नहीं था। जब शाह ने एलफिंस्टन को चुप देखा, तो आहिस्ते से कहा-"खुदा के लिए अब आप अपने इलाके को लौट जाइए । खुदा हाफ़िज़ ।" लेकिन एलफिंस्टन जैसा पुरुष निराश हो कर नहीं लौट सकता था। खास कर इसलिए भी कि रूस के हमले का डर पूरा-पूरा बना हुआ था। उसने गुस्सा पी कर ठण्डे दिमाग़ से विचार किया और कहा-"शाहे- अफ़ग़ानिस्तान के घरेलू मामलों में अंग्रेज़ सरकार को पड़ना मुनासिब नहीं है, इसलिए मैं मजबूर हूँ, लेकिन यदि अफ़ग़ान सरकार अंग्रेजों से दोस्ती की सन्धि करे तो अंग्रेज़ सरकार अफ़ग़ान सरकार को फ़िलहाल एक माकूल रकम नक़द देने को राजी है, और आइन्दा भी जब तक कि अफ़ग़ानिस्तान के शाह अंग्रेजों से दोस्ती का बर्ताव रखेंगे, उन्हें यह रकम बराबर हर साल मिलती रहेगी। शाह ने इसे स्वीकार किया और अफ़ग़ानिस्तान और अंग्रेजों की सन्धि हो गई । और अफ़ग़ानिस्तान की सैनिक शक्ति और अफ़ग़ानिस्तान और भारत के मार्गों और मार्ग की क़ौमों की पूरी जानकारी प्राप्त कर के एलफिस्टन पंजाब की राह हिन्दुस्तान लौटा । १५२
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