१८१३ का चार्टर । ईस्ट इण्डिया कम्पनी इंगलैंड की पार्लमेंट में कानून द्वारा क़ायम हुई थी। कम्पनी के अधिकारों को कायम रखने के लिए पार्लमेंट हर बीस बरस बाद नया कानून पास करती थी, जिसे चार्टर-एक्ट कहते थे । सन् १८१३ में जो चार्टर-एक्ट बनाया गया। उस में इंगलैंड का बना माल भारत के सिर मढ़ने और भारत के प्राचीन उद्योग धन्धों का नाश करने का विधिवत् प्रयत्न किया गया। यही एक्ट भारत की भारी भयंकर दरिद्रता और असहायता का मूल कारण बना। इस समय तक सूरत से विलायत को जो कपड़ा भेजा जाता था, वह अत्यन्त कड़े और निष्ठुर अत्याचारों द्वारा वसूल किया जाता था। जुलाहों को उनकी इच्छा और हित दोनों के विरुद्ध कम्पनी काम का ठेका लेने और उस ठेके के अनुसार काम करने को मजबूर किया जाता था । बहुधा जुलाहे-इस प्रकार काम करने की अपेक्षा भारी जुर्माने अदा कर देना पसन्द करते थे। उन दिनों अंग्रेज़ बढ़िया माल के लिए जुलाहों को जो दाम देते थे, उस से कहीं अधिक दाम डच, फ्रेंच, पुर्तगीज़ और अरब के सौदागर घटिया माल के लिए देते थे। कम्पनी के व्यापारी रेजीडेण्ट ने यह बन्दोबस्त किया था कि कम से कम निश्चित दामों पर थान खरीद कर समस्त कपड़े के व्यापार पर एकाधिकार अंग्रेज कम्पनी का स्थापित हो जाय । इस ज़बर्दस्ती से तंग र–जुलाहों ने अपना पेशा छोड़ दिया । अंग्रेजों ने इस बात के लिए, कि कोई जुलाहा दूसरा पेशा न करने पाए, यह कानून बना दिया कि कोई जुलाहा फ़ौज में भरती न होने पाए। तथा कोई जुलाहा बिना अंग्रेज़ अफ़सर की आज्ञा के शहर के दरवाज़ों से बाहर न निकलने पाए। आसपास के देशी राज्यों को भी दबाया जाता था कि उनके इलाके का कोई कपड़े का थान केवल कम्पनी के सौदागरों और दलालों के अतिरिक्त दूसरों के प्राकर-
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