पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१५०

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हाथों न बेचा जाय । महाँ तक कि इन मामलों में अंग्रेज़ी अदालतों का भी उपयोग होता था । बंगाल के जुलाहे तो क़ानून द्वारा आजीवन गुलाम बना दिए गए थे। वे हवालात में बन्द कर दिए जाते थे और उन का माल ज़ब्त करा दिया जाता था। सन् १८१३ के नए चार्टर के जारी होने से प्रथम भारत और इंगलैंड के बीच व्यापार करने का अधिकार ईस्ट इण्डिया कम्पनी ही को प्राप्त था । परन्तु अब इस नए चार्टर की बदौलत कम्पनी से यह अनन्याधिकार छीन लिया गया, और भारत के साथ व्यापार करने का दरवाजा प्रत्येक अंग्रेज़ व्यापारी के लिए खोल दिया गया । इसका अर्थ यह था कि अब भारतीय प्रजा पर अत्याचार करने और उन्हें हर प्रकार से लूटने का अधि- कार प्रत्येक अंग्रेज़ को मिल गया था। इसके अतिरिक्त यह भी तय हुआ था कि भारत के उद्योग-धन्धों को नष्ट करके इंगलैंड के उद्योग-धन्धों को बढ़ाया जाय, और इंगलैंड का बना माल जबर्दस्ती हिन्दुस्तान में बेचा जाय । अंग्रेजों को भारत में रहने और काम करने की अनेक सुविधाएँ दी गई थीं। भारत के खर्चे से अब तक आसाम और कुमायूँ क्षेत्र में चाय की खेती के प्रयोग हो रहे थे—अब उनके सफल होने पर वे सब बगीचे अंग्रेज़ सौदागरों को सौंप दिए गए। भारत के खर्चे पर अनेक अंग्रेजों को चाय का बीज लाने चीन भेजा गया। वे चीनी काश्तकारों को भारत में लाए, जिन्होंने भारत में चाय के बाग़ लगाए । और अंग्रेजों ने चाय बोने की रीतियाँ उनसे सीखीं। चाय के इन बाग़ों में काम करने के लिए ये गोरे मालिक कुलियों को गुलामी प्रथा पर ही रखते थे। उनके अत्याचारों की कहानियां बनती जा रही थीं। इसी प्रकार लोहा और नील के कामों के ठेके भी इन अंग्रेजों को दिए जाते थे। और उन्हें भारत से धन और कानून की सहायता दी जाती थी। भारतीय कारीगरों के रहस्यों का पता लगाने की—अनेक रीतियाँ और ज़ोर-जुल्म काम में लाए जाते थे। भारतीयों को विलायती शराब पीने का भी चस्का इसी समय से लगा। छोटे-बड़े शहरों में विलायती १५४