पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१५१

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शराब की दुकानें खुल गई थीं। साथ ही भारतीयों में यूरोप के ऐश- आराम तथा दिखावटी सामान खरीदने की आदत बढ़ती जाती थी। इस प्रकार भारतीय उद्योग-धन्धे-चरित्र और जीवन-क्रम का तेज़ी से ह्रास होने लगा था। प्लासी के युद्ध से वाटरलू के युद्ध तक अर्थात् १७५७ से १८१५ तक लगभग एक हजार मिलियन पाउण्ड अर्थात् पन्द्रह अरब रुपया शुद्ध लूट का भारत से इंगलैंड पहुँचा था। जिसके बल पर लंकाशायर और मानचेस्टर के भाप के इंजनों से चलने वाले नए कारखाने धड़ाधड़ उन्नत हो रहे थे। इस का अर्थ यह–कि ५८ वर्ष तक २५ करोड़ रुपया सालाना कम्पनी के नौकर भारतव सियों से लूट कर अपने देश ले जाते रहे। संसार के किसी भी सभ्य देश के इतिहास में भयंकर लूट की इससे बढ़- चढ़ कर मिसाल नहीं मिलती । इस लूट के मुकाबले तो महमूद ग़ज़नवी- और मुहम्मद गौरी के हमले और लूट महज़ खेल थे। यह भी जानना चाहिए कि उस समय के और आज के समय में १/५० का अन्तर है । इस भयंकर लूट ने ही इंगलैंड की नई ईजादों को फलने और वहाँ के कारखानों को जन्म देने का अवसर दिया । इस से दिन-दिन इंगलैंड की आय बढ़ती चली गई और उसी औसत से भारत की दरिद्रता बढ़ने लगी। जिस का परिणाम आगे चल कर यह हुआ कि १९वीं शताब्दि के अन्तिम चरण में -भारत के सब उद्योग- धन्धे-कहानी मात्र रह गए और जो देश सौ बरस पहले- संसार का सब से अधिक धनी देश था-वह सौ बरस के अंग्रेजी राज्य के परिणाम- स्वरूप संसार का सबसे निर्धन देश हो गया। इसी समय गूढ पुरुष लार्ड हेस्टिंग्स गवर्नर-जनरल हो कर भारत पाया । सन् १८१२ में नेपोलियन तबाह होकर रूस से लौटा। उसके छह लाख योद्धाओं में से साठ हज़ार ही जीवित बचे थे--जो अर्धमृत अवस्था में थे । इससे नैपोलियन के सब हौसले पस्त हो गए, और भारत पर माक्रमण करने तथा रूस से सहायता लेने के सब सुपने टूट गए । ठीक