पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१५३

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थी। फ्रांस के साथ बाईस वर्ष लोहा लेकर इंगलैंड विजयी हुआ था- इसलिए वह गर्व से इतरा रहा था। गूढ़पुरुष माक्विस आफ हेस्टिग्स बड़े ही गूढ पुरुष थे। इस समय वे ईस्ट इण्डिया कम्पनी के गवर्नर-जनरल थे, पर इस समय कम्पनी की आर्थिक अवस्था बड़ी डावाँडोल थी। बाजार में कम्पनी की हुण्डी बारह फी सदी बट्टे पर चल रही थी। माक्विस का ध्यान तुरन्त अवध के नवाब वजीर की ओर गया। यह वह समय था जब अंग्रेज़ दिल्ली सम्राट् के रहे-सहे प्रभाव का एकदम अंत कर देने के लिए उत्सुक थे। अब तक अवध का नवाब दिल्ली का एक सूबेदार और मुग़ल दरबार का एक वजीर था। हेस्टिग्स ने लखनऊ में एक दरबार किया और नवाब वजीर गाजीउद्दीन हैदर को बाज़ाप्ता बादशाह का खिताब दे दिया। इसका अभिप्राय यह था कि अवध का नवाब अब से दिल्ली के बादशाह के अधीन नहीं रहा। परन्तु इसका यह अर्थ न था कि वास्तव में नवाब की स्वाधीनता बढ़ गई हो । गाजीउद्दीन को बादशाह बनाते हुए यह शर्त साफ-साफ कर ली गई थी कि बादशाह होने से कम्पनी के साथ उसके सम्बन्धों में कोई अंतर नहीं पड़ेगा । इस सिलसिले में कम्पनी को लगभग अपना आधा राज्य नवाब वजीर ने दे दिया था। जिस समय गाजीउद्दीन सिंहासन पर बैठा था उस समय मृत नवाब का संचित चौदह करोड़ रुपया राजकोष में नक़द था। जिस पर अंग्रेजों की दृष्टि पड़ी थी। अब वह बड़ी तेजी से खाली हो रहा था। गाजीउद्दीन किताबी मुल्ला के नाम से प्रसिद्ध थे। ये दिन-रात कुरान के पन्ने उल्टा करते थे। व्यवहार में वे भद्र और शिष्ट थे। फिर अंग्रेजों ने तो उन्हें बादशाह बनाया था, इसलिए उनके प्रति कृतज्ञ होना