पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१५४

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और विनम्र रहना उनके लिए और भी लाज़िमी था । इसी से जब बादशाह को सनद देकर गवर्नर-जनरल बहादुर लखनऊ से विदा होने लगे तब गाजीउद्दीन हैदर ने उनसे हाथ मिलाते हुए कहा – “मेरा जानो- माल आपके लिए हाजिर है; खुदा हाफिज ।" निस्संदेह यह कोरा शिष्टाचार का वाक्य था परन्तु चतुर गवर्नर-जनरल ने नए बादशाह का वह बहुमूल्य वाक्य अपनी स्मृति पुस्तक में तुरन्त नोट कर लिया और उस पर पोलीटिकल डिपार्टमेन्ट के सेक्रेटरी स्विन्टन साहब और कौन्सिल के मेम्बर आदम साहब की साक्षी करा ली । मेजर वेली उन दिनों लखनऊ के रेजिडेन्ट थे। इनकी वेअदबी और बुरे व्यवहार से गाजीउद्दीन जिन्दगी से बेजार हो गए। परन्तु मेजर वेली ऊपर से संकेत पाकर ही उनसे ऐसा व्यवहार करता था । गवर्नर- जनरल ने बादशाह के ऊपर मेजर वेली के प्रभुत्व को रिवट लगा कर और भी अधिक पक्का कर दिया था। मेजर वेली छोटी-छोटी बातों में बादशाह पर हुक्म चढ़ाता था। वह चाहे जब बिना पूर्व सूचना के नवाब के महल में जा धमकता। उसने अपने गुर्गे बड़ी-बड़ी तनख्वाहों पर जबर्दस्ती महल में लगवा दिए थे। जो महल के राई-रत्ती हालचाल उस तक पहुँचाते रहते थे। वह अभागे बादशाह के साथ बड़ी शान से बात करता, और उसके साथ ऐसा व्यवहार करता कि वह अपने कुटम्बियों और नौकरों तक की नजर में गिर जाय । दिल्ली के केन्द्र को भंग करने और भारत के शिक्षा और वाणिज्य को गारत करने के बाद अब अंग्रेजों के नए मन्सूबे यह थे कि भारत को एक ब्रिटिश उपनिवेश बना दिया जाय, और अधिक से अधिक अंग्रेजों को भारत में बसा दिया जाय । इसी से उनके लिए मुक्त वाणिज्य का द्वार खोल दिया गया था। वे अपने साम्राज्य के सुपने साकार कर रहे थे- उनकी मुख्य अभिलाषा यह थी कि जैसे प्रास्ट्रेलिया, अफ्रीका और अमेरिका में अंग्रेजी बस्तियाँ कायम हो चुकी हैं, वैसी ही भारत में हो जाय। परन्तु भारत का गर्म जलवायु इस कार्य के उपयुक्त न था कि अधिक अंग्रेज १५८