भारत में बसाए जायें। फिर भी हिमालय की रमणीय घाटियाँ, देहरादून, कुमायूं, गढ़वाल आदि के इलाके ठण्डे थे। अंग्रेज़ चाहते थे कि भारत के गरम मैदानों की अपेक्षा हिमालय की घाटियों ही में ये अंग्रेज़ी उपनिवेश स्थापित किए जायँ, जहाँ अंग्रेजों की अपनी नैतिक और शारीरिक शक्तियाँ ज्यों की त्यों कायम रह सकें। परन्तु उस समय वे सब नेपाल साम्राज्य के अधीन थे, जो स्वाधीन राज्य था। इसलिए अब भारत पर पूरा पंजा जमा कर उन्होंने नेपाल की ओर रुख किया । अंग्रेज कुछ दिन पूर्व ही लाहौर के महाराज रणजीतसिंह को नेपाल से लड़ा चुके थे । अब युद्ध को उकसाने के लिए, कुछ सरहद्दी झगड़े खड़े कर लिए और बिना मामला निपटारा किए विवादग्रस्त जमीन पर कब्जा कर लिया। इस प्रकार युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार हो गई। परन्तु अब सब से बड़ी समस्या रुपये की थी । गवर्नर-जनरल को अब अपने नए बादशाह की याद आई, उसने कहा था कि मेरा जानोमाल आपके लिए हाजिर है। उसने अपने सेक्रेटरी रिकेट को लखनऊ भेजा और कहा -कि नवाब बादशाह ने दो करोड़ रुपया देने का वादा किया था, वह रुपया वसूल कर लाए। सेक्रेटरी रिकेट साहब रेजीडेन्सी पहुँचे और गवर्नर-जनरल का संदेश उन्हें सुनाया। सुन कर मेजर वेली ने कहा- "मुझे तो याद नहीं, कब गाजीउद्दीन हैदर ने मेरे सामने गवर्नर जनरल को दो करोड़ रुपया देने का वादा किया था।" "लेकिन गवर्नर महोदय की स्मृति-पुस्तक में साफ़ लिखा हुआ है कि मेरा जानोमाल आपके लिए हाजिर है। इसका मतलब हुआ, तमाम फौज और पूरा खजाना।" "लेकिन वह तो महज शिष्टाचार की बात थी। वे मुसलमान हैं, अपने शिष्टाचार के तौर पर ही उन्होंने वह बात कही थी।" "तो कोई परवाह नहीं, गवर्नर-जनरल बहादुर यह रुपया दान में नहीं -१५६
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