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पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१५६

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मांगते । बतौर कर्ज नवाब दे सकते हैं, उनका खजाना अभी तक भर- पूर है।" "और यह क़र्जा हमारी कम्पनी की सरकार शायद सौ या हजार बरस बाद चुकाएगी ?" “यह तो तब देखा जायगा, जब चुकाने का वक्त पायगा, अभी तो कर्ज लेने भर की बात है।" "लेकिन मुझे गवर्नर-जनरल का आदेश मिला था। बहुत ज़ोर-जुल्म करने पर नवाब एक करोड़ रुपया देने को राजी हुए हैं। यह बात मैंने गवर्नर-जनरल को लिख भी दी थी।" "इसी लिए तो उन्होंने मुझे भेजा है। आप ने बड़ी ही योग्यता से एक करोड़ रुपये की स्वीकृति ली है। इस के लिए गवर्नर-जनरल महोदय आप के उपकृत हैं । परन्तु और एक करोड़ रुपया लिए बिना काम नहीं चलेगा। दो करोड़ रुपया तो होना ही चाहिए।" "मैं नहीं समझता कि नवाब इतना दे सकेगा भी । फिर भी शायद और पचास लाख का प्रबन्ध कर सके।" “पचास लाख नहीं। 'पूरे दो करोड़ रुपये चाहिएं-मेजर, यह गवर्नर- जनरल साहब बहादुर का हुक्म है । इस की तामील होनी ही चाहिए।" और मेजर वेली को कस कर बादशाह की गर्दन दबोचनी पड़ी। जिस तरह भी सम्भव हुआ बादशाह वजीर को दो करोड़ रुपया अंग्रेजों को देना पड़ा। इसके लिए बादशाह को बहुत सताया गया। बड़ी यात- नाएँ दी गईं। यह रुपया नेपाल को ज़ेर करने में खर्च किया गया- नवाब का खजाना राई-रत्ती खाली हो गया। और नवाब का दिल भी टूट गया। इसी अवस्था में भग्न-हृदय बादशाह ने दम तोड़ा। १६०