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पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१५७

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कलंगा दुर्ग इस समय नेपाल का राज्य कम्पनी के राज्य से बहुत छोटा था। दोनों राज्यों के बीच पंजाब में सतलुज से लेकर बिहार में कोसी नदी तक लगभग ६०० मील लम्बी सरहद थी । अंग्रेजों ने इस सरहद पर पाँच मोर्चे बांधे। और पांचों स्थानों से आक्रमण करने का प्रबन्ध कर लिया । एक मोर्चा लुधियाने में कर्नल प्राक्टरलोनी के अधीन था। दूसरा मेजर जनरल जिलेप्सी के अधीन मेरठ में था। तीसरा मेजर जनरल बुड के अधीन बनारस और गोरखपुर में था। चौथा मुर्शिदाबाद और पाँचवाँ कोसी नदी के उस पार पूर्णिया की सरहद और सिकिम राज्य के सिर पर था । इन सब मोर्चों पर अंग्रेज सरकार की तीस हजार सेना, मय उत्तम तोपखाने के जमा की गई थी, जिसका सामना करने के लिए नेपाल दर्बार मुश्किल से बारह हजार सेना जुटा सका था। उसके पास न काफी धन था, न उत्तम हथियार । और कूटनीति में तो वे अंग्रेजों के मुकाबिले बिल्कुल ही कोरे थे। मेजर जनरल जिलेप्सी ने सब से पहले नेपाल सीमा का उल्लंघन कर देहरादून क्षेत्र में प्रवेश किया। नाहन और देहरादून, दोनों उस समय नेपाल राज्य के अधीन थे। नाहन का राजा अमरसिंह थापा था, जो नेपाल दर्बार का प्रसिद्ध सेनापति था। अमरसिंह ने अपने भतीजे बलभद्र- सिंह को केवल छह सौ गोरखा देकर जिलेप्सी के अवरोध को भेजा । बलभद्रसिंह ने बड़ी फुर्ती से देहरादून से साढ़े तीन मील दूर नालापानी की सब से ऊँची पहाड़ी पर एक छोटा-सा अस्थायी किला खड़ा किया। यह किला बड़े-बड़े अनगढ़ कुदरती पत्थरों और जंगली लकड़ियों की सहायता से रातोंरात खड़ा किया गया था। हकीकत में किला क्या था, एक अधूरी अनगढ़ चहार दिवारी थी। परन्तु बलभद्र ने उसे किले का रूप दिया, और उस पर मजबूत फाटक चढ़वाया । उस पर नेपाली झण्डा फहरा कर उसका नाम कलंगा दुर्ग रख दिया।