पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१५८

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अभी बलभद्र के वीर गोरखा इन अनगढ़ पत्थरों के ढोकों को एक- पर-एक रख ही रहे थे कि जिलेप्सी देहरादून पर आ धमका । उसने इस अद्भुत किले की बात सुनी और हँस कर कर्नल मावी की अधीनता में अपनी सेना को किले पर अाक्रमण करने की आज्ञा दे दी। जिलेप्सी की सेना में एक हजार गोरा पल्टन और अढ़ाई हजार देशी पल्टन सेना थी। परन्तु बलभद्र के इस किले में इस समय केवल तीन सौ जवान और इतनी ही स्त्रियाँ और बच्चे थे। उसने उन सभी को मोर्चे पर तैनात कर दिया। मावी ने देहरादून पहुँच कर उस अधकचरे दुर्ग को घेर लिया और अपना तोपखाना उसके सामने जमा दिया। फिर उसने रात को बलभद्र के पास दूत के द्वारा संदेश भेजा कि किले को अंग्रेजों के हवाले कर दो। बलभद्रसिंह ने दूत के सामने ही पत्र को फाड़ कर फेंक दिया और उसी दूत की जबानी कहला भेजा कि अंग्रेजों के स्वागत के लिए यहाँ नेपाली गोरखों की खुखरियाँ तैयार हैं । संदेश पा कर मावी ने रातोंरात अपनी सेना नालापानी की तलहटी में फैला दी और किले के चारों ओर से तोपों की मार प्रारम्भ कर दी। इसके जवाब में किले के भीतर से गोलियों की बौछारें आने लगीं। के गोलों का जवाब बंदूक की गोलियों से देना कोई वास्तविक लड़ाई न थी। और अंग्रेज उन पर हँस रहे थे। परन्तु शीघ्र ही उन्हें पता लग गया कि नेपालियों के जौहर साधारण नहीं हैं । रात-दिन सात दिन तक गोलाबारी चलती रही परन्तु कलंगा दुर्ग अजेय खड़ा रहा । जनरल जिलेप्सी इस समय सहारनपुर में पड़ाव डाले उत्कण्ठा से देहरादून की घाटियों की ओर ताक रहा था। जब उसे अंग्रेजी सेना के प्रयत्नों की विफलता के समाचार मिले, वह गुस्से से लाल हो गया और अपनी सुरक्षित सैना को ले नालापानी जा धमका। सारी स्थिति को देखने, समझने और आवश्यक व्यवस्था करने में उसे तीन दिन लग गए। उसने सेना के चार भाग किये। एक ओर की पल्टन कर्नल कार- १६२