पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१५९

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पेण्टर की अधीनता में आगे बढ़ी। दूसरी कप्तान फास्ट की कमान में, तीसरी मेजर कैली की और चौथी कप्तान कैम्पवैल की कमान में। इस प्रकार अंग्रेजों ने एक बारगी ही चारों ओर से दुर्ग पर आक्रमण कर दिया। कलंगा दुर्ग पर धड़ाधड़ गोले बरस रहे थे और दुर्ग के भीतर से बंदूकें तोपों का दनादन जवाब दे रही थीं। अंग्रेज़ी सेना का जो योद्धा दुर्ग की दीवार या द्वार के निकट पहुंचने की हिमाकत करता था, वहीं ढेर हो जाता था, वापस लौटता न था । इस समय नेपाली स्त्रियाँ भी अपने बच्चों को पीठ पर बाँध कर बंदूकें दाग रही थीं। अनेक बार अंग्रेज़ी सेना ने दुर्ग की दीवार तक पहुँचने का प्रयत्न किया, पर हर ब.र उन्हें निराश होना पड़ा । अनगिनत अंग्रेज़ सिपाहियों और अफसरों को गोरखा गोलियों का शिकार होकर वहीं ढेर होना पड़ा। बार-बार की हार और विफलता से चिढ़ कर जनरल जिलेप्सी स्वयं तीन कम्पनियां गोरे सिपाहियों को साथ लेकर दुर्ग के फाटक की ओर बढ़ा । परन्तु दुर्ग के उपर से जो गोलियाँ और पत्थरों की बौछारें पड़ीं तो गोरी पल्टन भाग खड़ी हुई । गुस्से और खीझ में भरा हुआ जिलेप्सी अपनी नंगी तलवार हवा में घुमाता हुआ दुर्ग के फाटक तक बढ़ता चला गया। जब वह फाटक से केवल तीस गज के अन्तर पर था कि एक गोली उसकी छाती को पार कर गई और वह वहीं ढेर हो गया । गोरखों के पास केवल एक ही छोटी सी तोप थी। वह उन्होंने फाटक पर चढ़ा रखी थी। उसकी आग के मारे शत्रु आगे बढ़ने का साहस न कर सकते थे। इसके अतिरिक्त तीखे तीर भी गोरखे बरसा रहे थे। जनरल जिलेप्सी की मृत्यु से अंग्रेजी सेना में भय की लहर दौड़ गई। तुरन्त मावी ने अंग्रेजी सेना का नेतृत्व हाथ में लेकर सेना को पीछे लौटने का आदेश दिया । अंग्रेजी सेना बेंत से पिटे हुए कुत्ते की भाँति कैम्पों में लौट आई। मावी अब किले पर आक्रमण का साहस न कर सकता था। वह घेरा डाल कर पड़ा रहा। किले वालों को सांस लेने का अवसर मिला। मावी ने दिल्ली सेन्टर को मदद भेजने को लिखा । और वहाँ से भारी