पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१६४

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खिलोना ही थी। इन रियासतों के एजेन्टों से मिलकर अंग्रेज़ रेजीडेन्ट एल्फिन्सटन निरन्तर नित नए षड्यन्त्र पेशवा के विरुद्ध कर रहा था। यहाँ तक कि पेशवा के हितैषीजनों को मरवा डाला तक गया । उन दिनों इस प्रकार की हत्याएँ आम बात थीं । बड़े-बड़े महत्व के लोग भी आसानी से मरवा डाले जाते थे। और हत्या पेशवा के सिर पर थोप दी जाती थी। इस समय बहुत से विश्वासघाती अंग्रेज़ों के टुकड़ों पर पल रहे थे। इन विश्वासघातियों में एक बालाजी पन्तनालू था। यह आदमी शुरू में सतारा में किसी घराने में पांच छह रुपए माहवार का नौकर था । पूना अाकर बह रेजीडेन्ट के यहाँ नौकर हो गया, शीघ्र ही वह अपनी चालाकी और कारगुजारी के कारण एल्फिन्सटन की नज़र पर चढ़ गया और पक्का जासूस बन गया । वह पेशवा की राई-रत्ती बातों की खबर अंग्रेजों को देता था। दूसरा ऐसा ही आदमी यशवन्त राव घोरपाड़े था । जो पेशवा के विरुद्ध झूठी-सची बातें बनाने और मुकदमें तैयार करने में एक ही था। अन्ततः अंग्रेजों ने बाजीराव के मन्त्री त्र्यम्बक को उस पर हत्याओं और षड्यन्त्रों के आरोप लगाकर चुनार में कैद कर लिया, जहाँ वह घुल घुल कर मर गया । वास्तव में त्र्यम्बक जी अंग्रेजों के मार्ग का एक कांटा था। वह एक योग्य जागरूक मराठा राजनीतिज्ञ था । वह सदा ही पेशवा को अंग्रेजों के विरुद्ध सावधान करता रहता था । इस लिए उस कांटे को दूर कर अब अंग्रेज तीसरे मराठा युद्ध की विशाल तैयारी में , लगे। सिंहगढ़, पुरन्दर और रायगढ़ के किले कम्पनी को मिल ही चुके थे। पर कम्पनी की सरकार तो अब असहाय बाजीराव से भेड़िए और मेमने की कहानी के समान क्षण-क्षण पर बदल रही थी। अंग्रेज संगीनों, जासूसों और कूटनीति से बाजीराव को दबोचते और हत्या तक के अपराध की स्वीकृति कराते जा रहे थे । बाजीराव अब बेहद घबरा गया। जासूसों-