पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१६७

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सैनिक वर्दी डाटे और एक हाथ में चाँदी के मूठ की छड़ी लिए धीरे-धीरे आता दीख पड़ा। गाइड ने युवक के कान कहा-"वह कप्तान मूर आ रहे हैं सर, कप्तान मूर।" युवक ने आगे बढ़ कर अपना परिचय दिया। कैप्टेन ने अपने हाथ की छड़ी पीछे आने वाले खिदमतगार को दी और हाथ मिलाते हुए तरुण का स्वागत किया। उसने कहा-“जहाज तीन दिन देर से आया है, हम घबरा रहे थे, कि क्या कारण हो सकता है । एलिस का खत मुझे ठीक समय पर मिल गया था। मैं आशा करता हूँ कि तुम शीघ्र ही अपने मिशन में सफल होनोगे । और सामने पहाड़ियों पर चारों ओर जो क़िले देख रहे हो, उन में से किसी न किसी पर कब्जा करके बहादुरी और नेकनामी हासिल करोगे। खैर, अभी तुम मेरे घर चल कर आराम करो-और बातें फिर होंगी।" नए देश का मेहमान उन दिनों मझगाँव में अमीर और अफ़सर अंग्रेजों की कोठियाँ बसी थीं। वहाँ पर कर्नल मूर एक उम्दा फ्लैट में शान से रहता था। वह अकेला था और उसकी सेवा में अनेक हिन्दुस्तानी नौकर थे। वह एक शानदार अफ़सर था, और शान से रहता था। उस ने घर का सब से बढ़िया सजा हुआ कमरा अपने मेहमान को दिया । और शीघ्र ही ब्रेक- फास्ट चुनने का आर्डर बैरा को दिया । ब्रेक-फ़ास्ट की टेबुल पर शाही भोजन तैयार थे। रेड-एण्ड-ह्वाइट की शराब, जो उस समय अमीर ही पी सकते थे-टेबल पर सजी थी। इसके अतिरिक्त अनेक जाति की स्वादिष्ट मछलियाँ थीं। एक प्लेट में पम्फेल्ट मछली थी जिसे ऊँचे तबके के खाने के शौक़ीन अंग्रेज़ बहुत ही पसन्द करते थे। स्वाच-सालमन की प्लेटें भी थीं जो यहाँ बम्बई में १७१