पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१६८

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काफ़ी मंहगी मछली थी। प्रान मछली की स्वादिष्ट करी की उम्दा डिशे तैयार की गई थीं। दोनों दोस्त प्रसन्नमन कर ब्रेक-फ़ास्ट का आनन्द ले रहे थे। आगन्तुक तरुण को लम्बे जहाज़ी सफ़र के बाद, जहाँ सूखा माँस और मछलियाँ सीमित मात्रा में मिलती थी, यह स्वादिष्ट और ताज़ा भोजन बहुत ही प्रिय और आनन्ददायक प्रतीत हो रहा था । ब्रेक-फ़ास्ट से फ़ारिग़ होकर दोनों दोस्त गप्पें उड़ाने बैठ गए। कर्नल मूर ने आज की छुट्टी ली हुई थी। वह खुश मिज़ाज और अच्छे विचारों का तरुण था । अपनी मुस्तैदी और अच्छे स्वभाव के कारण ही वह थोड़े ही समय में ऊँचे पद पर पहुंच चुका था । खिदमतगार हुक्का रख गया । अागन्तुक तरुण ने पूछा- “यह क्या बला है ?" "यह हवुल ववुल है, हिन्दुस्तानी लोग इसे हुक्का कहते हैं यह वास्तव में स्मोकिंग मशीन है । मजा आता है इसमें तमाखू पीने में। देखो पी कर।" कप्तान मूर ने खुद कश लगाया । जब पानी में गुड़गुड़ाहट उठी तो नवागन्तुक तरुण हंसने लगा। मूर ने कहा, धुआँ पानी में होकर आता है। तुम्हें शायद पसन्द न हो, इसलिए मैंने तुम्हारे लिए साउथ इण्डिया से चुरुट मंगा लिए हैं। उसने मेज की दराज से चुरुट निकाल कर टेबुल पर रख दिए। नवागन्तुक तरुण ने कहा-"धन्यवाद कैप्टेन मूर, मैं हतुल-बवुल ही को पसन्द करूँगा।" "तो शौक से पियो दोस्त, यह मजेदार चीज है।" "लेकिन कैप्टेन, मैंने हारवर पर एक अजीब बात देखी। यह क्या बात है ?" "क्या देखा ?" "बहुत लोग खून थूक रहे थे। क्या यह इन नेटिव लोगों को आम बीमारी है ?" १७२.