पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१६९

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"नहीं, मेरे दोस्त, वे पान चबाते हैं । पान एक पत्ता होता है, उसमें वे कुछ मसाला डालते हैं । यहाँ पान चबाने का आम रिवाज है।" "क्या यूरोपीय भी पान चबाते हैं ?" "नहीं । मैंने एक बार चबाया तो सिर चकरा गया । तौबा, तौबा। शौक हो तो मंगा दूँ ?" "खुदा बचाए । हाँ, यहाँ के कुछ हाल-चाल तो बताइए, इस मुल्क के क्या रंग-ढंग हैं ?" "अोह बम्बई के आस-पास का समूचा इलाक़ा और मध्यभारत तक अराजकता से भरा है। गोया चौतरफ सिविल वार छिड़ी है। मुल्क के इस छोर से उस छोर तक पिण्डारी छाए हुए हैं । सो सालहा साल से मुल्क में बदअमनी फैला रहे हैं । मुल्क के अमीर-गरीब सभी उनके नाम से काँपते हैं । वह न किसी राजा की आन मानते हैं, न अदल । झुण्ड के झुण्ड हथियार बंद गिरोह बना कर घूमते रहते हैं । गावों को जलाते हैं। अमीरों को घरों से उठा ले जाते हैं, और बड़ी-बड़ी रक़म लेकर छोड़ते हैं। रक़म न मिलने पर जान से मार डालते हैं । अब प्रानरेबुल कम्पनी के गवर्नर जनरल लार्ड हेस्टिग्स ने इनके सफाया करने का बीड़ा उठाया है, और इसके लिए उन्होंने एक लाख सेना तैयार की है । प्रगट में पेशवा औरमरहटे भी इस अभियान में अंग्रेजों का साथ दे रहे हैं, पर हक़ीक़त है कि वे स्वयं परस्पर भी लड़ रहे हैं और ब्रिटिश लोगों से भी लड़ने को यह तैयार बैठे हैं। इसके अतिरिक्त पेशवा बाजीराव मन से अंग्रेजों का दुश्मन है, वह सन्धि भंग करने पर तुला बैठा है। अब सुना है कि वह पिण्डारियों के दमन करने के बहाने अंग्रेजों के विरुद्ध सेना संग्रह कर रहा है । खैर, अब अपनी कहो-क्या इरादा है ? "क्या कहूँ, आज ही मैं यहाँ आया हूँ और अभी से मेरी तबीयत ऊब रही है।" "इसमें आश्चर्य की बात क्या है। हक़ीक़त में बम्बई किसी भी फैशने- बुल यूरोपियन के लिए एकदम नीरस जगह है । कोई अंग्रेज़ यहाँ देर तक १७३