पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१७०

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नहीं रह सकता। न यहाँ जीवन की रंगीनी है, एकदम मुर्दा जगह है। इसके अतिरिक्त यहाँ की आबोहवा भी एकदम आदमी की एनर्जी और शक्ति को खत्म कर देती है।" "लेकिन कैप्टन, तुम तो अच्छे तगड़े बने हुए हो । बम्बई की खराब आबोहवा का तुम पर कुछ भी असर नहीं दीख रहा।" बहुत सावधानी से रहता हूँ। मुझे यहाँ रहना पड़ता है। पर यह भी कोई जिन्दगी है कि मौज मज़ा से दूर एक ब्रह्मन की तरह रूखी-सूखी जिन्दगी काट दी जाय ।" तरुण हंस दिया उसने कहा-"फिर भी मेरे सामने कैप्टेन मूर और सर एलफिंस्टन के अनुकूल उदाहरण हैं जिन्होंने भारत में आकर अपने जीवन का ध्येय पूरा किया है । क्यों न मेरे जैसा तरुण उनके उदाहरण से साहस और उत्साह ग्रहण करे । ज्यों ही मैंने भारत में आने का इरादा किया, तभी मैंने सुना कि भारत में भेजे जाने के लिए अच्छे तरुणों की आवश्यकता है । बस मैं शीघ्र ही डायरेक्टरों के कोर्ट के सम्मुख पेश हुआ, और वहाँ से अनुमति पत्र पा कर जब मैं इण्डिया आफ़िस गया तो मेरा नाम तुरन्त यूरोपियन रेजीमेडेण्ट के केडेटशिप में दर्ज कर लिया गया। मैंने नियमानुसार शपथ ग्रहण की, और चूंकि लंडन में भी निकट भविष्य में होने वाली लड़ाई की चर्चा गर्म है, इसलिए सर्वप्रथम जहाज़ से जो यूरो- पियन इन्फेंट्री की रेजीमेंट आ रही थी- उसी में मुझे भी कैप्टेन डिक्सन की कमाण्ड में भेज दिया गया।" "तो तुम ठीक वक्त पर आए हो मेरे दोस्त। यहाँ तुम्हें ज्यादा देर सुस्त बैठे रह कर ऊबना न पड़ेगा। क्योंकि आज सुबह ही-माउण्ट स्टुर्ट एलफ़िन्सटन का पूना से डिस्पैच पाया है, जिस में ताकीद की गई है कि तुम्हारी.कम्पनी ज्यों ही भारत भूमि पर क़दम रक्खे, उसे तुरन्त ही तेज़ी से पूना रवाना कर दिया जाय । मेजर विल्सन की कमाण्ड में तुम जा रहे हो मेरे दोस्त, जो बड़े मेहरबान अफ़सर हैं। मैं आज रात ही १७४