पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

करना चाहिए।" तरुण मराठा अफसर आगे बढ़ा। उसने पेशवा की रत्न जटित तलवार दोनों हाथों में उठा कर नम्रता और उत्साह से कहा-"श्रीमन्त सरकार की जय हो । यह श्रीमन्त की यशस्वी तलवार है।" तलवार नाजुक और लाखों रुपयों के मूल्य की थी। उसकी मूठ पर बहुमूल्य रत्न जड़े थे, उसे हथियार की अपक्षा एक जेवर कहा जाना अधिक उचित था। पेशवा ने तलवार उठा कर म्यान से निकाल ली। पाँच हज़ार मराठों ने जोर से जयनाद किया। अभी पेशवा के मुंह से एक शब्द भी न निकलने पाया था कि अंग्रेजों का गुप्तचर यशवन्त राव घोरपाड़े हाथ जोड़े घुटनों के बल पेशवा के पैरों में गिर गया -उसने गद्गद् कण्ठ से कहा-श्रीमन्त सरकार, यह क्या आज्ञा दे रहे हैं । आप के पुण्य शरीर को यदि बन्दूक की एक गोली ने स्पर्श भी कर लिया तो हम कहीं के न रहेंगे। सारे मराठे बिना सिर के शरीर मात्र रह जाएंगे। जब तक एक भी मराठे के शरीर में एक बूंद खून है-आप श्रीमन्त को अपना जीवन खतरे में डालने की कोई आवश्यकता नहीं है।" पेशवा सोच में पड़ गया। उसने अपनी तलवार इसी विश्वास घाती सरदार के हाथों में दे दी और उसने उसे मखमली कोश में सावधानी से बंद कर पेशवा के चरणों में रख दिया । पेशवा ने दीर्घ श्वास लिया। फिर उसने धीमी आवाज़ में कहा- 'गोखले, दौड़ जा. और अपने पिता सेनापति से कह–कि चाहे जो हो वह लड़ाई में पहल न करे । प्रारम्भ अंग्रेजों ही की ओर से हो । तरुण अफसर ने घोड़े पर सवार हो तुरन्त खिड़की की ओर प्रस्थान किया । पर उसने पेशवा की इस आज्ञा को पसन्द नहीं किया। वह पहाड़ी से उतर कर धीरे-धीरे चलने लगा। वह इस कायर आज्ञा को ले जाना अपमानजनक समझ रहा था। पर ज्योंही उसने पूना का काठ का पुल पार किया, एक विचार तेजी के साथ उसके दिमाग में दौड़ गया । उसने - -१६४