पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. सेना को बच निकलने का ठिकाना ही न था। परन्तु इस समय कर्नल वर ने असाधारण धैर्य का परिचय दिया, और उसकी देशी रेजीमेंट ने भी असम वीरत्व और नमकहलाली का हक़ अदा किया-मराठों के दुर्भाग्य से भूमि भी वहां सम न थी। इसके अतिरिक्त वाम पार्श्व में एक बड़ा दलदली मैदान था। जिसका पता न मराठों को था-न अंग्रेज़ों को। आक्रमरण- कारी मराठे इस दलदल में फंस गए। वे आते गए और फंसते गए। इस बीच अंग्रेज़ी सेना को सुरक्षा और जवाबी आक्रमण का सुअवसर मिल गया। पीछे आने वाली मराठी सैन्य को इस देवी दुर्भाग्य का कुछ भी पता न था । वे बराबर तेजी से आगे बढ़े आ रहे थे, बस ज्यों ही वे अंग्रेज़ी तोपों की मार में पहुंचे-अंग्रेज़ी तोपों ने उन पर आग उगलनी आरम्भ कर दी। उधर कर्नल वर्र को अपनी अंग्रेज़ बटालियन को आगे बुला लेने का अवसर मिल गया ; उसने बड़ी तत्परता और धैर्य से काम लिया। उसकी बटालियन उ-पिण्टो की सेना से जमकर लोहा ले रही थी। इसमें सुशिक्षित और उत्कृष्ट सैनिक थे। इसके अतिरिक्त अंग्रेज़ रिजर्व सैन्य के सुशिक्षित माने हुए घुड़सवार उनकी पृष्ठ-रक्षा के लिए दबादब आगे बढ़ते आ रहे थे। इस परिस्थिति में वह कठिन क्षरण टल गया। और मराठों का घसारा अवरुद्ध हो गया । एक दो प्रभावशाली चार्ज होने के बाद, जिन में अंग्रेज़ी तोपों ने उन्हे बहुत हानि पहुँचा दी थी, उन्होंने हिम्मत हार दी, और वे पीछे मुड़े । जाते हुओं को सब से पिछली पंक्ति में तरुण गोविन्द- राव गोखले था। जो शीघ्र ही इस भागती हुई सैन्य से पृथक् हो गया। और खिन्न भाव से अपने पिता के पावं में जा खड़ा हुआ । जो इस क्षणिक युद्ध में पासा पलट जाने से दुःखित और क्रुद्ध खड़ा था । मराठा सैनिक अब अव्यवस्थित हो कर भाग रहे थे। और अंग्रेजी सेनाएँ व्यव- स्थित रूप से युद्ध-स्थ नी में महत्वपूर्ण स्थलों को दखल करती जा रही थीं । आश्चर्य की बात तो यह थी कि यह महत्वपूर्ण ऐतिहासिक संग्राम एक घण्टे से भी कम समय में समाप्त हो गया । कठिनाई से इस युद्ध में पांच सौ मराठा वीर खेत रहे । अंग्रेजों की हानि तो इससे भी बहुत कम

१६८