पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२०६

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लार्ड मैकाले के विचार कलकत्ते की कौंसिल भवन में दो बड़े आदमी पाराम से बैठे हुए गप्पें मार रहे थे। मौसम बहुत अच्छा था । आषाढ़ का पहला मेह बरस चुका था। हवा में गीली मिट्टी की सोंधी महक आम की अमराइयों में होकर तबीयत खुश कर रही थी। बंगाल के मौसम का यह वातावरण बड़ा ही लुभावना होता है । ठंडी हवा चल रही थी, और आम के सघन पत्तों में गिरते हुए सूरज की सुनहरी धूप छन कर समूचे वातावरण को रंगीन बना रही थी। दोनों आदमी अंग्रेज़-कुल-शिरोमरिण, लार्ड खानदान के बड़े आदमी थे । इस समय वे सब कामों से फारिग़ होकर शाम को चाय पीने के बाद बंगले के बाहर लान में आराम कुर्सियों पर बैठे हुए इत्मीनान और बेफिक्री से दिल खोल कर बातें कर रहे थे। दोनों के हाथों में कीमती विलायती चुस्ट थीं और वे बातें करते हुए उसका आनन्द ले रहे थे। इनमें से एक का नाम सर चार्ल्स मैटकाफ़ था, जो गवर्नर-जनरल की कौंसिल का अण्डर सेक्रेटरी था। यह चालीस साल की उम्र का एक लम्बा, तगड़ा और मजबूत शरीर का आदमी था। इसकी खोपड़ी गंजी थी और लाल रंग की मूंछे बारीक कटी हुई थीं। उसकी नीली आँखों में तेज़ चमक थी, और यह स्पष्ट प्रतीत होता था कि वह एक निर्भीक और स्पष्टवक्ता पुरुष है । हरेक बात को तोल कर विचार पूर्वक बोलता था। दूसरा आदमी लार्ड मैकाले था, जो कि गवर्नर-जनरल की कौंसिल का नया लॉ मेम्बर था। यह पद कौंसिल में इसी साल बढ़ाया गया था और इस तरुण अंग्रेज़ को कम्पनी के डाइरेक्टरों ने खासतौर से इस पद पर नियुक्त करके भेजा था। इसके संबंध में प्रसिद्ध था कि वह एक विद्वान् और कानून का प्रसिद्ध पंडित है । इसके सुपुर्द यह काम किया गया था कि वह भारतीय दंड विधान की रचना करे । यह एक २१०