पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२२७

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'तभी ता यह करामात है।" "अजी अक्सीर और तस्वीर खुदा के राज़ हैं। सीने-ब-सीने चलते हैं । जिसकी तकदीर में होता है, उस पर मेहरबान होते हैं तो उसे इल्म-गैब बता भी देते हैं।"

२४ :

नाजुक ठोकर बांदी ने दस्तबस्ता अर्ज की, “प्रालीजाह, हुजूर शहनशाह क़ासिम अलीशाह तशरीफ ला रहे हैं । वे कहते हैं, हम खुद बादशाह और बेगम को दुग्रा देंगे। वादशाह और बेगम हड़बड़ा कर खड़े हो गए। चांदी के हवादान पर सवार जिनों के बादशाह शहनशाह क़ासिम अलीशाह कलन्दर आए । हवादान फ़र्श पर रखा गया, बादशाह और कुदसिया बेगम ने झुक कर पल्ला चूमा । जड़ाऊ कुर्सी पर बैठाया। उन्होंने हाथ उठाकर होठों ही में बड़बड़ा कर आशीर्वाद दिया फिर वे एकदम उठ खड़े हुए। उन्होंने कहा-"बेगम अपने हाथ से खैरात करें।" वे चल दिए। बेगम ने हँस कर बादशाह से कहा--"सुना आपने, ?" "सुना, खैरात करो।" "फिर?" "कितना ?" “एक करोड़ तो करो।" बादशाह ने हुक्म किया--अभी एक करोड़ रुपए का चबूतरा रूबरू चुना जाय । देखते ही देखते एक करोड़ का चबूतरा चुना गया । बादशाह शाह साहेब का हुक्म २३१