पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२२८

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बेगम ने पास जाकर देखा और कहा 'बस, एक करोड़ इतना ही होता है ?" उसने एक नाज़क ठोकर चबूतरे पर लगाई। और हुक्म दिया- "लूट लो।" देखते ही देखते वह एक करोड़ रुपया आज़ादों, मजबूबों, और साकियों को लुटा दिया गया। इसके बाद चौदह दिन जश्न मनाने का हुक्म हुआ, जिस में असंख्य धन-रत्न स्वाहा हो गया।

२५:

बाजार का रुख आज लखनऊ के बाज़ार में बड़ी उत्तेजना फैली हुई थी। पहर दिन चढ़ गया, परन्तु अभी तक आधी से अधिक दूकानें बन्द थीं। बकरू नान- बाई ने दूकान में तंदूर को गरमाने के बाद पाव-रोटी सजाते हुए पड़ोस के लाला मटरू मल से कहा- "चचा मटरू, अभी तक टूकान नहीं खोली, इस तरह गुमसुम कैसे बैठे हो, दो पहर दिन चढ़ गया।" मटरू लाला सिकुड़े हुए दूकान के आगे हाथ में चावियों का गुच्छा लिए बैठे थे। उन्होंने नाक-भौं सिकोड़ कर कहा -"क्या करूँ दूकान खोल कर, अभी सरकारी हाथी आएंगे-और सब जिन्स चबा जाएँगे। कौन लड़ेगा भला इन काली बलाओं से।" "सचमुच चचा यह तो बड़ा अन्धेर है। कल ही की लो, पाँच सेर आटा गूंद कर रखा था, एक ही चपेट में सफ़ा कर गया। तंदूर तोड़ गया घाते में । खुदा गारत करे। नवाब आसफुद्दौला के ज़माने से दूकान- दारी करता हूँ-पर ऐसा अन्धेर तो देखा नहीं।" "तुम अपने तंदूर और पाँच सेर आटे की गाते हो म्याँ । मेरी तो २३२