पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२२९

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मन भर मक्का साफ कर गया । महावत साथ था। महावत को मैंने डाँटा तो वह शेर हो गया । और उल्टा मुझी को अाँख दिखाने लगा- कहने लगा-"मैं क्या करूँ ? सरकार से पीलखाने के खर्च का रूपया मिलता ही नहीं ; इसलिए एक-एक महावत अपने हाथी के साथ तीसरे दिन बाज़ार आता है। जो हाथ लगा-उससे पेट भरता है। इतने में नसीबन कुंजड़िन वहाँ आ गई । उसने कहा-- "अधेले की रोटी और अधेले का सालन दो म्या बकरू, ज़री बोटियाँ ज्यादा डालना।" "अधेले में क्या तुम्हें सारी देग उलट दूं ?" "तो मरे क्यों जाते हो, सालन के नाम तो नीला पानी ही है ।" "लखनऊ भर में कोई साला मेरे जैसा सालन बना तो दे, टाँगों तले निकल जाऊँ । ला, प्याला दे। कल हाथी ने तेरा भी तो नुकसान किया था?" “ए खुदा की मार इस हाथी पर, मुमा टोकरे भर म्वरबूजे खा गया । धेले तक की बोहनी न हुई थी, बस ला कर रखे ही थे। मैंने डराया तो मुत्रा सूंड उठा कर झपटा मेरे ऊपर । मैं भागी गिरती-पड़ती। पर किस से कहें, यहाँ नखलऊ में तो बस इन डाढ़ीज़ार फिरंगियों की चलती है । और किसी की दाद-फ़रियाद कोई नहीं सुनता।" इसी समय मियाँ नियामत हुसैन चकलादार हाथ में ऐनक लिए आ बरामद हुए। फटा पायजामा, फिडक जूतियाँ और पुरानी शेरवानी, दुबले- पतले फूंस से आदमी । आते ही बोले-"म्याँ बकरू, झपाके से दमड़ी का रोग़नजोश, दमड़ी की रोटी और अधेले की कलेजी दे दो।" "खूब हैं आप, पैसे के तीन अघेले भुनाते हैं । लाइए पैसा नक़द ।" "म्याँ अजब अहमक हो, चकलेदार हैं हम, कोई उठाईगीर नहीं।" "माना आप चकलेदार हैं, इज्जतवाले हैं ; मगर सुबह-सुबह उधार के क्या मानी ? फिर पिछला भी बकाया है। अब आप को उधार भी दें और अहमक भी बनें।" २३३