पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२३०

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"अगले-पिछले सभी देंगे, तनख्वाह मिलने पर।" “यह तो मैं साल भर से सुनता पा रहा हूँ।' "तो भई, मैं क्या करूँ, तीन बरस से तलब नहीं मिली।" "तो छोड़ दो नौकरी।" "नौकरी छोड़ कर क्या करूँ ?" "घास खोदो।" "कमज़र्फ़ आदमी, हमें घास छीलने को कहता है- हम चकलादार हैं, नहीं जानता।" "तो हज़रत, पैसा नक़द दीजिए-और सौदा लीजिए। क्या ज़रूरी है कि हम अपना माल दें और गालियाँ खाएँ ।" "अजब जमाना आ गया है, रज़ील लोग शरीफ़ों का मुंह फेरते हैं, सरकारी अफ़सरों को आँखें दिखाते हैं।" "तो साहब, हम तो अपना पैसा माँगते हैं। उधार वेचें तो खाएँ क्या ?" "तुफ़ है उस पर जो इस बार तनख्वाह मिलने पर तुम्हारा चुकता न करे । लो लोगो हम चले।' "खैर, तो इस वक्त तो लेते जाइए चकलादार साहब, हम रज़ील लोग हैं. मुल दूकान के आगे खाली गाहक भेज नहीं सकते।" चकलादार साहब नर्म हुए। कहने लगे--"भई, हम क्या करें, मुल्के- जमानिया साहब लोगों को लाखों रुपये रोज़ देते हैं, पर नौकरों को तलब नहीं मिलती। हाथी आवारा हो कर बाजारों में फिरते हैं, उन्हें राशन नहीं दिया जाता।" इसी वक्त मौलाबक्स खानसामा आ गया। पिछली बात सुन कर कहा--"भई, अब तो दो साल और तलब नहीं मिलेगी। नवाब कुदसिया बेगम को लड़का हुआ है । उसके जश्न का हुक्म है । करोड़ों रुपया खर्च होगा। सुना नहीं तुम ने, बेगम ने करोड़ रुपये का चबूतरा लुटवा दिया।" २३४