पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२३५

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- . बचा हुआ खाना । सफ़ेद रूमाल में बाँधा, दीनू हलवाई से तीन पैसे की पाव भर मलाई ली। घेले की शक्कर, पैसे की अफीम, घेले का तमाखू और पहुँच गई। मजे से खाना खाया, घुल-घुल कर बातें की, और मिल-जुल कर रात काटी । बस इसी तरह उनके दिन-रात कटते जाते थे। जिस दिन की सुबह का हम ज़िक्रे -खैर कर रहे हैं, उससे पहली शाम को आग़ा मीर के हाथों पाँच रुपया नक़द करीम खाँ की मुट्ठी में पहुंचे थे। और करीम खाँ इस वक्त अपने को रईस समझ रहे थे। उन्होंने बी इमामन के लिए नौ आने का साढ़े तीन गज़ चिकन और डेढ़ गज जाली विजनवेग के कटरे से खरीदी थी। कपड़ा देख कर इमामन ने तुनककर पूछा- "कहाँ से रुपया मार लाए ?" "कहीं से मार लाए, तुम्हें आम खाने या पेड़ गिनने "ज़रूर कहीं मुंठ चलाई हैं, लो हम कहे देते हैं ।" "तुम्हारे सिर की कसम है जो हम ने यह काम किया हो।" "तो फिर ?" "मिल गई एक आसामी, अब तुम चाहो तो पो बारह हो जाय ।" "कुछ कहोगे भी या पहेलियाँ बुझानोगे ?" "लो कहे देते हैं, बस आगामीर वाली बात है।" "अए हए, मुया आग़ा हमें तोप से उड़वाना चाहता है।" "अजब बेतुकी हो । तोप से उड़ाने की क्या बात है ?" "वैर तो कहो, क्या चाहता है वह ?" "वह नहीं, छोटा फिरंगी। रेजीडेन्सी वाला।" "हाँ हाँ, वही मुना बन्दर मुसा, वह क्या चाहता है "बस इतना ही कि बादशाह-बेगम और बादशाह सलामत के रब्तजप्त के हालचाल और नई बेगम के हालात उन्हें मालूम होते रहें।" ?"