पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२४१

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उठ खड़ा बादशाह का इस वक्त मिजाज गर्म हो रहा था। उस पर विलायती शराब का रंग भी चढ़ा था। उनकी आँखें लाल हो रही थीं, उन्होंने अध पिया पैग होंठों से हटा कर गुर्रा कर कहा-"क्या कहा तौहीन, खुदा की क़सम, तौहीन ? कैसी ?" "योर मेजेस्टी, यह बूढ़ा बारबार गर्दन हिला कर कह रहा है कि आप बादशाह नहीं हैं।" बादशाह को याद आ गया। तख्तनशीन के वक्त बादशाह के इस चचा ने नसीर का विरोध किया था और अपना हक जाहिर किया था- उसी बात को याद कर बादशाह गुस्से में उछल कर कुर्सी हुआ। बदनसीब बूढ़ा नवाब बहरा भी था और उसे आँखों से भी कम दीखता था। वह बादशाह और नाई की कुछ भी बात नहीं समझ सका। उसकी गर्दन उसी तरह हिल रही थी। नाई ने कहा-“योर मेजेस्टी देखते रहें, मैं अभी इसे ठीक कर देता हूँ।" इतना कह कर नाई अपनी जगह से उठा । उसने एक पतली-सी डोरी जेब से निकाली। उसमें एक फंदा लगा कर काँटा फाँस लिया। फिर उसने बूढ़े नवाब के पीछे जा कर वह काँटा उसके गलमुच्छों में फंसा दिया। इसके बाद वह उसे एक झटका देकर हँसने लगा । झटके के साथ बूढ़े नवाब की गर्दन भी डगमग हिलने लगी, परन्तु वह बारबार झुक कर बादशाह को सलाम करता रहा। यह देख नवाब और उसके अंग्रेज़ मुसाहिब खिलखिला कर हँस पड़े। बूढ़े नवाब किसी तरह नाई के झमेले से जान बचा कर भागे । नाई फिर बादशाह की बग़ल में बैठ कर मुर्ग-मुसल्लम पर हाथ साफ करने लगा। इस वक्त बादशाह खूब गहरे उतरे हुए थे । नाई ने उन्हें अन्धाधुन्ध खूब पिलाई थी। इस समय चार खवास बादशाह सलामत की खिदमत में हाज़िर थीं। दो बादशाह पर मोर्छल ढल रहीं थीं, तीसरी पानदान २४५