पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२५२

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"तो इंगलिस्तान के बादशाह उनके साथ कैसा सलूक करते हैं ?" "दस्तूर तो यह है, योर मेजस्टी, कि जब कोई लेडी बादशाह के रूबरू पहुंचती है, तब वह अदब से झुक कर अपना हाथ बादशाह के आगे बढ़ाती है, और बादशाह झुक कर उसे चूम लेता है" इतना कह कर नाई ने बड़ी अदा से झुक कर अपना हाथ बादशाह की ओर बढ़ाया और बादशाह ने उसकी बताई हुई रीति पर कोमल पंजों से उसका हाथ उठा कर झुक कर चूम लिया। इसके बाद खिलखिला कर कहा-"क्या यह सचमुच मज़ाक नहीं है ?" "नहीं, योर मे जस्टी, यह एटीकेट है।" "और तुम कहते हो कि मुझे रेजीडेण्ट की इस औरत के साथ ऐसा ही करना चाहिए ?" "यक़ीनन योर मेजस्टी।" "बड़ा बददिमाग़ है मेजर वेली, कहीं वह पिस्तौल ले कर मुझ से न भिड़ जाय।" "ऐसा नहीं हो सकता योर मेजस्टी, वह यक़ीनन खुश होंगे।" "तो शर्त बदते हो खान ?" "पाँच सौ अशर्फियों की योर मेजस्टी।" "खैर, बुलायो, अलसुबह अच्छी बोहनी हुई, खुदा खैर करे ।" मिसेज वेली की उम्र पचास को छू रही थी। चेहरे पर उसके झुर्रियाँ थीं और बदन दुबला-पतला और लम्बा था। दाँत नकली थे। उन्हीं दाँतों की बहार दिखाते हुए उन्होंने बड़ी नजाकत से अपना हाथ बादशाह की ओर बढ़ा दिया । बादशाह ने कनखियों से मेजर और नाई को देखा और नाई की बताई विधि से हाथ चूम लिया। मेम साहब ने बड़े अंदाज़ और नखरे से ज़रा झुक कर अपनी नक़ली बत्तीसी की बहार दिखाते हुए कहा-"हिज मेजस्टी से मिल कर हमें खुशी हुई है । मुझे आप बहुत पसन्द हैं योर मेजस्टी।" मेजर वेली ने मेम साहब का अभिप्राय बादशाह को समझा दिया। बादशाह ने विरक्त हो २५६