4 रियासत में अंधेरगर्दी मची हुई है। मालगुजारी ठीक-ठीक अदा नहीं की जाती-मुल्क में ठगों-डाकुओं और चोरों की भरमार है । किसी रियाया की जानोमाल की खैरियत नहीं है।" "कहाँ ? मुझे तो कुछ भी नहीं मालूम । अभी मैं आगामीर से कैफियत तलब करता हूँ।" "खैर, तो इतना तो मैं भी कह सकता हूँ कि शिकायतें भूठी नहीं हैं। और हिज एक्सिलेन्सी ने मुझ से रिपोर्ट भी की है कि वजह बताई जाय-कि क्यों नहीं अवध का राज्य कम्पनी बहादुर के अमल में ले पाया जाय और आप को पैंशन दे दी जाय ।" "खुदा की क़सम, यह तो सरासर जुल्म होगा, मैं तो हर तरह अंग्रेजों से दोस्ती का दम भरता हूँ।" "तो मेरी दोस्ताना राय यह है कि आप रियासत के हालचाल सम्हाल लें, ऐसा न हो कि यहां आकर गवर्नर-जनरल बहादुर को ऐसी खबरें मिले कि उनकी राय आपके खिलाफ हो जाय ।" "इन्शाअल्लाताला, मैं हर तरह गवर्नर-जनरल बहादुर को खुश करूँगा। लेकिन मुझे भरोसा महज़ आपकी ही दोस्ती का है।" मेजरवेली ने कहा-मैं हिज मेजस्टी की सेवा में हर तरह उपस्थित । और हिज मेजस्टी ने मेरी पत्नी का जो सम्मान किया है उसके लिए आभार मानता हूँ। उम्मीद है, आपने मेरा संदेश गांठ बाँध लिया होगा। अब रुखसत अर्ज ।" उसने बादशाह की ओर मिलाने को हाथ बढ़ाया। "खुदा हाफिज, कह कर बादशाह ने मेजर वेली से हाथ मिलाया । लेकिन जब लेडीवेली ने हंस कर बादशाह की ओर हाथ बढ़ाया-तो बादशाह ने नाई की बताई विधि से फिर उसे चूम लिया । इस के बाद गले से पन्ने का कीमती कण्ठा निकाल कर मेम साहब को देते हुए कहा- "यह हकीर कण्ठा कबूल कीजिए।" मेम साहब ने हंस कर कण्ठा गले में पहन लिया। और नकली बत्तीसी की बहार दिखाते हुए कहा-"धन्यवाद योर मेजस्टी," और चल दी। मेजर वेली भी चले गए। २५८
पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२५४
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