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पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२८

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, "तो क्या हुआ । सूद उन्हें बराबर देते हैं और रियासत पर कर्जा लेते हैं। फिर चौधरी ऐसे शरीफ़ हैं कि अाँखें ऊँची कभी करते देखा नहीं। हमेशा 'बड़े भाई' कहते हैं। और उनकी साहबज़ादी, अरे हाँ ; अहमद, वे खिलौने जो दिल्ली से आए थे, सब हैं न ? उन्हें साथ रखना । देखना, मैं भूल न जाऊँ।" "खिलौने किस लिए ?" "साहबजादी के लिए, चौधरी की लाड़ली पोती है । वाह, बड़ी सूरत और सीरत पाई है। मुझे वह दादाजी कहती है। और हाँ, एक टोकरा अमरूद और सफेदा, उम्दा चुन कर रख लेना । मियाँ पीरू, तुम चले जाओ, अभी इसी वक्त बाग़ में ।" पीरू सिर झुका कर चला गया। महमूद ने कुछ नाराजी के स्वर में कहा-"आप नौकरों के सामने भी ..?" छोटे मियाँ पूरी बात न कह सके-बीच ही में बड़े मियाँ ने मीठे लहजे में कहा-"पीरू तो नौकर नहीं है । घर का आदमी है । खैर, तो तैयार रहना । और हाँ, वह गुप्ती भी लेते चलना।" "वह किस लिए ?" "चौधरी को नज़र करूँगा । उम्दा चीज़ है।" "उम्दा चीजें घर में भी तो रहनी चाहिए।" "मगर दोस्तों को सौगात भी तो उम्दा ही जानी चाहिए।" "दोस्ती क्या, चौधरी समझेगा मियाँ कर्जे के लिए खुशामद कर रहे हैं।" "तौबा, तौबा, ऐसा भी भला कहीं हो सकता है । चौधरी एक ही दाना आदमी हैं। चलो तो तुम, मिल कर खुश होनोगे।" छोटे मियाँ जब जाने लगे तो बड़े मियाँ ने टोक कर कहा-"अमा, जरा रघुवीर हलवाई के यहाँ कहला भेजना-मिठाई अभी भेज दे। कल ही मैंने कहला दिया था, तैयार रखी होगी। सुबह तो बहुत देर हो जायगी।"