। करूँगा। लेकिन यदि मेरी गोली सर हुई तो बोलो तुम मुझे क्या दोगे।" सुरेन्द्र ने हंस कर कहा। "शर्त की क्या ज़रूरत है। गोली तुम्हीं सर करना । मैं महज़ तमाशा देखूगा।" “वाह, यह शिकार का दस्तूर नहीं । तुम मेहमान हो, पहली गोली तुम्हें ही चलानी होगी।" "लेकिन मेरे पास तो अंगूठी है ही नहीं।" "तो और कुछ दाव पर लगायो।" छोटे मियाँ ने हंस कर कहा-"अच्छी बात है। मेरे पास एक चीज़ है, अगर शेर तुम्हारी गोली से मरा तो, मैं वह चीज़ तुम्हें नज़र करूँगा।" "वह क्या चीज़ है, दिखाओ पहले ।" "नहीं, दिखाऊँगा नहीं । छोटी-सी चीज़ है । मुमकिन है तुम्हारी अंगूठी के बराबर कीमती न हो । लेकिन तुम्हें वही कबूल करनी होगी।" "वाह, नज़र की चीज़ की भी कीमत आंकी जाती है भाई जान । तुम एक तिनका ही उठा कर दे देना।" "तब शर्त पक्की रही । पहले गोली कौन दागेगा।" "तुम ?' "और यदि गोली शेर को न लगी। और शिकार भाग गया, तो बिगड़ोगे तो नहीं।" "भाग कर शिकार कहाँ जायगा । देखना बीच खेत मारेंगे । लो होशियार हो जाओ।" "दोनों दोस्त हरवे-हथियार से लैस हो बैठे। हाका हुअा। शेर की दहाड़ सुन कर छोटे मियाँ के हाथ पाँव फूल गए, उनसे निशाना नहीं सधा, गोली खता कर गई । सुरेन्द्र पाल की गोली ने शेर का काम तमाम कर दिया । खुशी-खुशी दोनों दोस्त मंच से उतरे । 'शिकार की नाप तौल की। घर आए। जब छोटे मियाँ चलने लगे तो उन्होंने कहा- "शर्त का नजराना हाजिर करता हूँ।"
पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/४२
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