पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/४५

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कलेजे निकाल रहे थे, दूसरी ओर बनारस के भांड हँसाते-हँसाते लोगों को लहालोट कर रहे थे। शहनाई वाले अपनी ही तान में ऐठे जा रहे थे। इधर कल्यान ने भी हापुड़ की डेरेदार डोमनियाँ और नटनियाँ बुलाई थीं-वे पंचम तार पर जो कजरी और बिरहा अलापतीं, तो गाँव वालों के कलेजे उछल कर रह जाते थे। इधर यह धूम-धाम, उधर घोड़ों की हिनहिनाहट, ऊँटों की वलवलाहट, घसियारनों और कोचवानों का जमघट, सब मिल कर खासी धूम मची हुई थी। आस-पास के गाँवों से बहुत लोग इस बारात को देखने आए थे। ब्याह के मण्डप के पास जाजम पर बड़े मियाँ कमर में शाल लपेटे, भारी मंडील सिर पर लगाए, रुपयों की भरी थैली आगे रखे बैठे सब नेग चुका रहे थे । वे प्रत्येक मेहतर से चौधरी-भाई, सरदार, कह कर बोल रहे थे। उनका व्यवहार ऐसा था मानो इन्हीं की बेटी का ब्याह है। -- कल्यान बफरे शेर की तरह दहाड़ता हुआ आया, और आते ही बड़े मियां के सामने पैर फैला कर बैठ गया। उसने कहा- “सरकार, चाहें मारे चाहें बख्शें, मगर मैं नखलऊ के नकटे को बेटी नहीं देने का।" "क्यों क्या हुआ, इस क़दर क्यों बिगड़ रहे हो ?" "बस हुजूर, मर्द का कौल है । बस हुक्म दीजिए--बज्जातों को गाँव से निकाल बाहर किया जाय ।" "अाखिर बात क्या है, कुछ कहोगे भी।" "हुज़र, छोटे मुँह बड़ी बात । कहता है, समधी की मिलनी सरकार से करूँगा। सरकार जब यहाँ बैठे हैं, तो वे ही लड़की के बाप हैं।" "तो झूठ क्या है, लड़की का बाप. मैं ही तो हूँ। तुम्हारी ही क्या, गाँव भर की लड़कियों का बाप मैं ही हूँ।" "आप तो सरकार हमारे भी माई-बाप हैं, सरकार तो परमेसुर के रूप हैं मेहतर की जाजम पर आकर आप बैठ गए। पर उस साले भंगी के बच्चे की यह जुर्रत-कि सरकार से समधी की मिलनी करेगा।" बस, या और भी कुछ ?" + ४८