पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सरदारों में जो सब से ऊँची रास वाले घोड़े पर सवार प्रौढ़ पुरुष था, उस की धनी काली डाढ़ी थी। सतेज आँखें थीं। डाढ़ी को उसने डाठे से बाँध कर सिर पर एक बड़ी सी सफ़ेद पगड़ी बाँध रखी थी। वह लम्बे डौल-डौल का बलिष्ठ पुरुष था । उस का वक्ष चौड़ा था और उस की भाव-भंगिमा में हुकूमत और प्रभुत्व का आभास प्रकट होता था। उस की अवस्था चालीस के लगभग होगी। रंग उस का ताँबे के समान था। दूसरे पुरुष की भी आयु इतनी ही थी। परन्तु उस की डाढ़ी मुंडी हुई और मूंछे तराशी हुई थीं। उस ने एक सादा बगलबन्दी पहनी थी, जिस में एक कमरबन्द लपेटा हुआ था। उसके सिर पर भी सफेद पगड़ी थी। तथा माथे पर तिलक की छाप थी। यद्यपि यह पुरुष भी शरीर का बलिष्ठ था और उस ने कमर में दो-दो तलवारें बाँध रखी थीं। फिर भी स्पष्ट था कि वह ब्राह्मण है । प्रथम पुरुष ने घोड़ा रोकते हुए एक पैनी दृष्टि अपने चारों ओर के वातावरण पर डाली। फिर अपने साथी की ओर देखकर कहा--"अच्छा स्थान है, यहीं डेरा डाला जाए।" फिर उसने तरुण को पुकार कर कहा- “रामपाल, ज़रा देखो तो--यहाँ पास कहीं जल का ठिकाना हो, तो यहीं मुक़ाम किया जाए। बस्ती के निकट जाने से तो बड़ी दिक्कत होगी। वह सामने वाला बाग़ और उसके बग़ल वाला मैदान कंसा है। उस ने अपनी दाहिनी ओर के एक सघन बगीचे की ओर हाथ फैला दिया । बाग़ बहुत बड़ा, बीघों में फैला हुआ था। और उसके सामने बहुत भारी मैदान था। जिस तरुण को रामपाल कह कर सम्बोधन किया गया था, उसकी आयु बाईस बरस की थी। छरहरा बदन, पानीदार आँखें, चीते सी कमर, और सुर्ख अनार सा चेहरा, उस पर भीगती हुई मसें । चुस्त पायजामा, पर गुलाबी अंगरखी। जिस पर केसरी फैट में पेशकज और कटार खुसी हुई । हाथ में तोड़ेदार बंदूक । कमर में दुहरी तलवार । तरुण घोड़ा बढ़ा कर उधर गया, उसने एक चक्कर बाग़ का लगाया।