पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. फिर उसने मैदान की जाँच की, तब लौट कर कहा--"बहुत अच्छी जगह है दद्दा । तालाब भी है, कुआँ भी है । कुटी के पास शिवाला भी है । जगह साफ़-सुथरी है।” "तो भाया, तू सवारियों के डेरे का ठौर ठीक कर।" इतना कह कर-उस पुरुष ने अपना घोड़ा आगे बढ़ाया। उस का साथी भी साथ-साथ चला। तरुण पीछे काफ़ले की ओर लौट गया। दोनों पुरुष घोड़े से उतर पड़े। एक सघन आम के पेड़ के नीचे पहुँच कर उन्होंने अपने वस्त्रों की धूल झाड़ी । घोड़ों का चारजामा खोल कर उन्हें छोड़ दिया। वे हरी-हरी घास चरने लगे। इतने ही में का फ़ला भी वहाँ पहुँच गया। सब ने यथा स्थान डेरा डाला। स्त्रियों का पड़ाव बीच में डाला गया। आम की छाया में जगह साफ़ करके जाजम बिछा दी गई। दोनों सरदार जाजम पर बैठ गए। खिदमतगार ने हुक्का भर कर आगे ला धरा । सरदार हुक्का पीने और साथ ही धीरे-धीरे बातें करने लगे। तरुण घोड़ा खिदमतगार को सौंप, सब काफ़ले को यथा स्थान डेरा देने में व्यस्त हो गया । काफ़ले के लोग भी अपना-अपना ठीया डाल-अपने-अपने काम में लग गए। कोई घोड़े की दलाई-मलाई में लगे, कोई खाने-पीने की खटपट में । कोई दिशा-मैदान में गए । अन्धेरा होते ही मशालें जला ली गई। और वह स्थान एक छोटे-से गाँव का अस्थायी रूप धारण कर गया।

२:

गढ़-मुक्तेश्वर गढ़-मुक्तेश्वर जिला मेरठ में गंगा का प्रसिद्ध घाट और उत्तरी भारत का प्रमुख तीर्थ स्थल है । प्रति वर्ष कार्तिकी पूर्णिमा पर गंगा-स्नानार्थियों का वहाँ लक्खी मेला लगता है । गढ़-मुक्तेश्वर का यह क़स्बा यद्यपि अब बिल्कुल खस्ता हाल और उजाड़ हो गया है, परन्तु वह मेला अब भी A