के लिए गए थे, उनको संग लेकर दीवान हिकमतराय फिर आ पहुँचे । उन्होंने चौधरी के पास बैठ कर यानि से कहा--"बस्ती में तो चिडिर का पूत भी नहीं है।" क्या बात है ?" "मराठों के डर से बस्ती के सब लोग भाग गए हैं। सारा वस्त्रो सूना पड़ा है । एक भी आदमी बस्ती मेंहीं है।' चौधरी ने साभिप्राय नज़र से गुरुराम ऋगार देखा, फिर उन्होंने हुक्के में कश लगाया। कुछ ठहर कर उन्होंने पूछा-"दूध मिला ?" “जी, दूध भी नहीं मिला।" "तो दीवानजी, तुम दूध के लिए कुछ आदमी गंगा के उस पार भी गाँवों में भेज दो। नावें तो घाट पर होंगी ही। इसके अतिरिक्त रसद का भी प्रबन्ध करना ही होगा।" "मैं अभी बन्दोबस्त करता हूँ।" दीवान हिकमतराय ऐनक को नाक पर ठीक करते हुए चले गए। चौधरी ने गुरुराम की ओर देख कर कहा-"एक बार भाऊ से मिलना होगा।" वे फिर गम्भीर भाव से हुक्का पीने लगे। गुरुराम ने कहा- "भाऊ तो आपको जानता है, वह क्या आपकी मदद करेगा ?" "कैसे कहा जा सकता है। पर मिलना तो ज़रूरी है, हमीं पर छापा पड़ गया तो हमारे पास रक्षा का क्या बन्दोबस्त है।" "पर भाऊ तो आपको अपनी ओर करना ही चाहेगा।" "पण्डितजी, हमें किसी का तो आसरा लेना ही पड़ेगा । अभी नहीं कहा जा सकता कि हिन्द के राजा अंग्रेज़ हैं या मराठे या बादशाह । मैं तो दिल्ली के बादशाह की शरण पाया था। पर यह तो-गले पड़ी ढोलकी बजाए ही सिद्ध- -वाला मामला है । अभी तो उसका रुख देखना है, आगे की बात पीछे सोची जायगी। जब भाऊ दलबल सहित यहीं पड़ा है तो हमारा आना उसकी नज़र से छिपेगा थोड़े ही । वह सुन कर न जाने क्या समझे। इससे आगे चल कर मेरा उससे मिलना ही ठीक है।" जो आदमी
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