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पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/६३

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रसद लेने बस्ती में गए थे, उनमें से एक को संग लेकर दीवान हिकमतराय फिर आ गए। उन्होंने कहा--"यह कहता है एक बनिया बस्ती में छिपा बैठा है। उसके पास रसद है । पर मराठे लूट न लें, इस भय से उसने छि जा रखी है।" ' नमने उससे बात की थी।" चौधरी ने उस प्रादमी से पूछा "जी, उससे मिलनाकी मुश्किल है, वह घर में छिपा बैठा है, और घर के द्वार पर झूठ-मूठ सूठ को ही ताला लगा रखा है। जिससे लोग समझे कि घर में कोई है ही नहीं।" "पर वह घर में है और उसके पास रसद है, यह तुम से किस ने कहा ?" "उसी के एक आदमी ने, जो मुझे बस्ती से बाहर मिल गया था। उसी ने बताया है कि वह घर के भीतर छिपा बैठा है।" "उसके नाम का भी कुछ पता लगा ?" "बसेसर साहू नाम है उसका ।" "बसेसर ? अोहो, ठीक है, वह मुक्तेसर ही में रहता है। मैं उसे जानता हूँ। मैंने उसे लाहौर में देखा था। उसे ज़रूर मेरी याद होगी। बड़े आड़े वक्त में मैंने उसकी मदद की थी।” कुछ देर चौधरी चुपचाप हुक्का पीते रहे, फिर उन्होंने कहा—“रामपाल, तू जा भाया, जरा देख कि उसे मेरी याद है भी या नहीं। और जल्द ही लौट कर आ, तुझे मेरे साथ ही भाऊ के पास चलना होगा।" उन्होंने सेवाराम की ओर देख कर कहा--"सेवा, तू मेरे स्नान-पूजा की झटपट व्यवस्था कर।" इतना कह कर चौधरी व्यस्तभाव से उठ खड़े हुए । रामपाल भी तेजी से चला गया। बसेसर साहू जिस आदमी ने बसेसर साहू की सूचना दी थी, उसे साथ लेकर रामपाल सिंह बस्ती की ओर चले । अभी भी दोपहर दिन नहीं चढ़ा था, पर हवा