पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/८४

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-e- सब सरदार, सेनापति और मंत्री नीची नज़र किए चुप खड़े थे। सामने ही उसका घोड़ा कसा हुआ तैयार खड़ा था। उसके मस्तिष्क में विचारों के तूफ़ान आ रहे थे, और वह तेज़ी से क़दम उठाए इधर से उधर टहल रहा था। "तो यह सच है"-उसने सामने खड़े एक मराठा सरदार की ओर देख कर लरज़ती ज़बान से कहा-"कि जिस प्रदेश पर मैं ने अपने खून- पसीने को एक करके अमन-व्यवस्था और शान्ति स्थापित की थी- उसे अब-दरोग़ हलफी, विश्वासघात, बलात्कार, अपहरण-क़त्ल, हत्या-लूट, बग़ावत और आपस की लड़ाइयों ने कलंकित और टुकड़े- टुकड़े कर रखा है।" सामने खड़े सरदार ने हाथ बाँध कर कहा-"श्रीमन्त, ऐसा ही है।" "और तुम यह भी कहते हो कि यह सब उस पाजी-नमक हराम अमीरखाँ की करतूत है, जिसे मैंने धूल में से उठाया था। और जिस के